छत्तीसगढ़ में एक बार फिर सरकारी मोतियाबिंद सर्जरी पर सवाल उठने लगे हैं। बीजापुर जिला अस्पताल में मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद 9 मरीजों की आंखों में गंभीर इन्फेक्शन पाया गया है। कुछ ही दिनों में इनकी रोशनी कम होने, आंखों में तेज़ सूजन, धुंधलापन और लगातार पानी आने जैसे लक्षण उभरने लगे, जिसके बाद सभी को आनन-फानन में रायपुर के मेकाहारा अस्पताल रेफर किया गया। यह मामला इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि पिछले साल दंतेवाड़ा में भी इसी तरह की लापरवाही में 10 बुजुर्गों की आंखों की रोशनी चली गई थी।
इन 9 मरीजों में पुरुष और महिलाएं शामिल हैं—अवलम डोग्गा (56), पुनेम जिम्मो (62), मडियम मासे (67), अलवम कोवे (52), अलवम पोज्जे (70), बुधनी डोढ़ी (60), पदम शन्ता (54), पेड्डू लक्ष्मी (62) और अलवम सोमे (70)। इनमें से 8 मरीजों का ऑपरेशन 24 अक्टूबर को हुआ था, जबकि एक का ऑपरेशन 8 नवंबर को किया गया था। शुरुआत में सब कुछ सामान्य लग रहा था, लेकिन धीरे-धीरे आंखों में दर्द, लालिमा और दिखने में कमी होने लगी। इसके बाद मरीजों ने जिला अस्पताल को जानकारी दी और फिर स्थिति बिगड़ते ही सभी को रायपुर भेजा गया।
मेकाहारा अस्पताल के अधीक्षक डॉ. संतोष सोनकर ने बताया कि यह मामला ऑपरेशन के बाद हुए इन्फेक्शन का है, लेकिन इसकी वजह फिलहाल स्पष्ट नहीं है—यह गलती सर्जन की है या मरीजों की ओर से किसी एहतियात की अनदेखी, इसकी जांच जारी है। अस्पताल में 5 मरीजों को ऑपरेशन थिएटर में शिफ्ट किया गया है, जबकि 3 मरीजों को एंटीबायोटिक इंजेक्शन दिए गए हैं। अभी सभी की स्थिति पर लगातार निगरानी रखी जा रही है। डॉक्टरों के अनुसार आंखों की सूजन कम होने में 5 से 6 हफ्ते तक लग सकते हैं, इसलिए रोशनी पर पड़े असर का वास्तविक आकलन अभी संभव नहीं।
जिला अस्पताल की इंचार्ज डॉ. रत्ना ठाकुर का कहना है कि 24 अक्टूबर को कुल 14 मरीजों का ऑपरेशन हुआ था और पहली फील्ड विजिट में किसी तरह की दिक्कत नहीं मिली थी। यहां तक कि ओटी रिपोर्ट भी 3 नवंबर को जगदलपुर भेजी गई थी और उसमें संक्रमण का कोई संकेत नहीं मिला। लेकिन दूसरी फील्ड विजिट में कुछ मरीजों की आंखों में लालिमा और पानी आना देखा गया, जिसके बाद 9 मरीजों को तुरंत रायपुर रेफर किया गया।
छत्तीसगढ़ में आंखों के ऑपरेशन को लेकर इससे पहले भी बड़े हादसे हो चुके हैं। सबसे भयावह घटना 2011 के आंखफोड़वा कांड के नाम से याद की जाती है, जिसमें सरकारी शिविरों में मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद 50 से अधिक लोगों की आंखों की रोशनी चली गई थी। इस कांड में कई अधिकारियों और डॉक्टरों को सस्पेंड किया गया था। ठीक एक साल पहले दंतेवाड़ा में भी 10 आदिवासी बुजुर्ग गलत सर्जरी की वजह से अंधे हो गए थे, जिसके लिए डॉक्टर गीता नेताम, स्टाफ नर्स ममता वेदे और नेत्र सहायक दीप्ति टोप्पो पर कार्रवाई हुई थी।
अब बीजापुर का ये नया मामला राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर एक और बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। 3 सदस्यीय जांच समिति को 3 दिनों के भीतर रिपोर्ट सौंपनी है। यह जांच बताएगी कि यह लापरवाही किस स्तर पर हुई—ऑपरेशन थिएटर की स्वच्छता, दवाइयों की गुणवत्ता, उपकरणों का संक्रमण, या कोई और वजह। फिलहाल सभी मरीज रायपुर में इलाजरत हैं और प्रशासन पर दबाव है कि इस बार दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो।
बीजापुर से शुरू हुआ यह मामला फिर एक बार चेतावनी देता है कि स्वास्थ्य सेवाओं में लापरवाही किसी भी गरीब परिवार की जिंदगी हमेशा के लिए बदल सकती है।