राजनांदगांव जिले के घुपसाल ग्राम के 35 वर्षीय उमेश कुमार की जीवन यात्रा किसी चमत्कार से कम नहीं। सात फरवरी 2025 की रात जब वह घर में आग तापते हुए नींद में आग में गिर पड़ा, तो क्षण भर में उसका जीवन बदल गया। पूरे शरीर पर गहरे जलने से वह गंभीर रूप से झुलस गया। पहले उसे डोंगरगांव के अस्पताल ले जाया गया, फिर राजनांदगांव, उसके बाद रायपुर के हॉस्पिटल में 18 दिनों तक भर्ती रहा,परंतु कोई विशेष सुधार नहीं हुआ। निराश परिवार उसे पुनः राजनांदगांव और फिर भिलाई के निजी चिकित्सालयों में ले गया। इलाज की तलाश में महीनों भटकने के बाद भी घाव न भरने से उसकी स्थिति अत्यंत गंभीर हो चुकी थी।
लगातार दर्द और अधूरे इलाज के कारण उमेश के दोनों हाथ कंधे और कोहनी के पास से पूरी तरह से आपस में चिपक गए थे। वह न तो खुद खाना खा सकता था, न ब्रश कर सकता था, यहाँ तक कि कपड़े पहनने और दैनिक कार्यों के लिए भी दूसरों पर निर्भर हो गया था। मानसिक और आर्थिक रूप से टूट चुके उमेश ने खुद को परिवार पर बोझ समझना शुरू कर दिया था और आत्महत्या तक का विचार कर चुका था।
इसी दौरान एक पूर्व मरीज ने उसे भिलाई स्थित जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र के एडवांस बर्न केयर विभाग (सेक्टर-9) के बारे में बताया — और वहीं से उसकी जिंदगी ने नया मोड़ लिया।
18 अगस्त 2025 को उमेश को गंभीर स्थिति में जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय में भर्ती कराया गया। परीक्षण में पाया गया कि उसके दोनों कंधे छाती से जुड़े थे और कोहनियाँ पूरी तरह मुड़ी हुई थीं। शरीर में खून और प्रोटीन की भी भारी कमी थी तथा लगभग 40 प्रतिशत क्षेत्र पर गहरे जले घाव थे।
बर्न यूनिट की टीम ने पहले उसकी स्थिति को स्थिर किया, फिर 26 अगस्त को पहला बड़ा ऑपरेशन किया गया। बर्न विभाग प्रमुख एवं मुख्य चिकित्सा अधिकारी (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएँ) डॉ. उदय कुमार के नेतृत्व में डॉ. अनिरुद्ध मेने एवं उनकी टीम ने अत्यंत सावधानी से कोहनी और कंधे की सर्जरी की और जले हुए स्थान पर स्किन ग्राफ्टिंग कर नई त्वचा प्रत्यारोपित की। नसों के जुड़ाव और खून की नलिकाओं के जोखिम के बावजूद टीम ने असाधारण दक्षता दिखाई। ऑपरेशन सफल रहा और उसका एक हाथ फिर से कार्यशील हो गया।
इसके बाद उमेश 25 सितंबर को पुनः भर्ती हुआ। इस बार उसके बाएँ हाथ पर सर्जरी की गई, कोहनी और कंधे के जोड़ को सीधा कर पैरों से ली गई त्वचा का प्रत्यारोपण किया गया। कुछ ही हफ्तों में उमेश के दोनों हाथ खुल चुके थे, घाव भर गए और वह फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो गया। अब वह खुद खाना खाता है, कपड़े पहनता है और सामान्य जीवन जी रहा है।
उमेश ने भावुक होकर कहा, “बीएसपी के जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय ने केवल मेरी जान नहीं बचाई, बल्कि मेरे पूरे परिवार को जीवन लौटा दिया। आज मैं फिर से अपने बच्चों के लिए पिता और अपने परिवार के लिए सहारा बन सका हूँ।”
उसकी पत्नी ने बीएसपी प्रबंधन के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह अस्पताल उनके परिवार के लिए भगवान के समान सिद्ध हुआ है।
इस जटिल सर्जरी के दौरान मुख्य चिकित्सा अधिकारी प्रभारी (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएँ) डॉ. विनीता द्विवेदी के नेतृत्व में एनेस्थीसिया विभाग ने अत्यंत नाजुक परिस्थितियों में जोखिमपूर्ण एनेस्थीसिया प्रबंधन को सफलतापूर्वक संभाला। साथ ही मुख्य चिकित्सा अधिकारी (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएँ) डॉ. कौशलेन्द्र ठाकुर के सतत मार्गदर्शन और पूरी ऑपरेशन टीम के समन्वय से यह दुर्लभ ऑपरेशन संभव हो सका।
डॉ. उदय कुमार ने बताया कि जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय का एडवांस बर्न केयर डिपार्टमेंट, न केवल प्रदेश बल्कि देशभर में अग्नि-दुर्घटनाओं के मरीजों के इलाज में अग्रणी है। यहाँ ओडिशा, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और बिहार तक से मरीज आते हैं। विभाग में आधुनिक सर्जिकल सुविधा, संक्रमण नियंत्रण, उच्च प्रोटीनयुक्त आहार और रिहैबिलिटेशन की बेहतरीन व्यवस्था है, जिससे मरीजों की केवल जान ही नही बचती — बल्कि वे समाज में फिर से काम करने लायक बनते हैं।
उमेश आज अपाहिज नहीं, आत्मनिर्भर है — और भिलाई इस्पात संयंत्र के चिकित्सा विभाग ने यह साबित किया है कि सही उपचार, समर्पण और मानवीय संवेदना से हर जीवन को नया अध्याय दिया जा सकता है।