सट्टा किंग का नेटवर्क क्रिकेट से लेकर राजनीति तक हर मौके को पैसा कमाने का ज़रिया बना लेता है। अवैध होने के बावजूद सट्टे का कारोबार कई शहरों में धड़ल्ले से चल रहा है और लोग जल्दी अमीर बनने की लालच में इसमें फंसते जा रहे हैं। चिंताजनक बात यह है कि अब इसकी चपेट में सिर्फ युवा ही नहीं, बल्कि छोटे बच्चे भी आने लगे हैं। मेरठ से सामने आई एक घटना ने इस समस्या के नए और खतरनाक पहलू पर रोशनी डाली है।
मेरठ पुलिस को गुप्त सूचना मिली थी कि गुरुद्वारा रोड स्थित ट्रांसफार्मर के पास एक युवक नियमित रूप से सट्टा खाईवाली कर रहा है। पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए टीम गठित की और मौके पर छापा मारा। पुलिस की मौजूदगी देखते ही एक युवक ने भागने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उसे पकड़कर तलाशी ली। उसके पास से चार सट्टा पर्चियां, एक पेन और 225 रुपए नकद बरामद हुए। हिरासत में लिए जाने के बाद उसकी पूछताछ में जो खुलासा हुआ, वह पुलिस को भी चौंका गया।
पूछताछ में आरोपी की पहचान शोएब के रूप में हुई। उसने स्वीकार किया कि वह बच्चों को सट्टे की ओर आकर्षित करके उन्हें इस जाल में फंसा रहा था, ताकि अपनी कमाई बढ़ा सके। वह बच्चों से नंबर लेकर उन्हें ‘लकी’ मानता और खुद भी उसी पर दांव लगा देता। अगर किसी बच्चे का नंबर लग जाता, तो उसे बहुत थोड़े पैसे देकर बाकी रकम खुद रख लेता। पुलिस का कहना है कि शहर में सट्टेबाजों के खिलाफ लगातार अभियान चलाया जा रहा है और इस मामले में भी आगे की कार्रवाई की जा रही है।
यह घटना बताती है कि सट्टेबाज अब बच्चों की मासूमियत का फायदा उठाकर उन्हें जुए की खतरनाक लत में धकेल रहे हैं। माता-पिता के लिए यह चेतावनी है कि अगर बच्चा अचानक ज़्यादा जेब खर्च मांगने लगे या पैसे खर्च करने की आदत में बदलाव दिखने लगे, तो सावधान होना जरूरी है। बच्चों की पहुंच से पैसे दूर रखना, उन्हें पैसों की कीमत समझाना और ऑनलाइन गेमिंग के दुष्प्रभावों से अवगत कराना बेहद जरूरी हो गया है, क्योंकि ऐसी गतिविधियां बच्चों को धीरे-धीरे एडिक्शन की ओर धकेल सकती हैं।
मनोचिकित्सकों के अनुसार सट्टा खेलना एक गंभीर लत बन सकता है, जिसे छोड़ पाना आसान नहीं होता। एम्स भोपाल के मनोचिकित्सक डॉ. तन्मय जोशी बताते हैं कि हर 100 में से लगभग 10 लोग सट्टे के एडिक्शन के शिकार होते हैं। दिनभर नंबरों के बारे में सोचना, पैसे का इंतजाम करने की जद्दोजहद, बार-बार दांव लगाने की इच्छा—ये सभी संकेत होते हैं कि व्यक्ति सट्टे की लत में फंस चुका है। यह मानसिक तनाव, अनिद्रा और कई अन्य शारीरिक-मानसिक बीमारियों का कारण बन सकता है। इस लत से बाहर निकलने के लिए किसी दवा का इलाज नहीं है, लेकिन काउंसलिंग और परिवार का सहयोग व्यक्ति को धीरे-धीरे इस आदत से छुटकारा दिला सकता है।
यह पूरी घटना समाज को चेताने का काम करती है कि सट्टा न सिर्फ अवैध है, बल्कि बच्चों और युवाओं को तबाह करने वाला एक खतरनाक जाल है। इससे दूर रहना ही सबसे ज्यादा जरूरी और समझदारी भरा कदम है।