सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: विदेश भेजे जाने वाले पैसों पर अब 10% से ज्यादा TDS नहीं—DTAA को आयकर कानून पर प्राथमिकता

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय कराधान से जुड़े एक बेहद महत्वपूर्ण मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए साफ कर दिया है कि यदि भारत और किसी अन्य देश के बीच Double Tax Avoidance Agreement (DTAA) मौजूद है, तो उस देश के अनिवासी व्यक्तियों या विदेशी कंपनियों को भुगतान किए जाने पर TDS 10% से अधिक नहीं लगाया जा सकता। कोर्ट के अनुसार, जहां DTAA लागू होता है, वहां आयकर विभाग घरेलू कानूनों के आधार पर 20% TDS की मांग नहीं कर सकता—भले ही विदेशी प्राप्तकर्ता ने PAN न दिया हो।

यह मामला तब सामने आया था जब आयकर विभाग ने Mphasis, Wipro और Manthan Software जैसी IT कंपनियों पर आरोप लगाया कि उन्होंने PAN न होने पर भी विदेशी प्राप्तकर्ताओं को भुगतान करते समय 20% की दर से TDS नहीं काटा। विभाग का तर्क था कि आयकर कानून की धारा 206AA यह अनिवार्य करती है कि PAN न देने वाले पर 20% TDS लागू होगा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने विभाग का यह तर्क खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया कि जहां DTAA लागू है, वहां आयकर अधिनियम की कोई धारा इस अंतरराष्ट्रीय संधि से ऊपर नहीं हो सकती।

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के 2022 के फैसले को सही ठहराया और कहा कि आयकर अधिनियम 1961 की TDS संबंधित धाराओं को DTAA की शर्तों के साथ सामंजस्य में पढ़ना चाहिए। यदि DTAA में अधिकतम कर की सीमा 10% तय है, तो PAN न देने पर भी 20% काटना कानून के अनुरूप नहीं है। इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट भी इसी मत पर था, जिसे सुप्रीम कोर्ट 2023 में पहले ही स्वीकार कर चुका है।

आयकर विभाग ने यह भी दावा किया कि सर्वे में कई कंपनियों को बिना उचित TDS काटे भुगतान करते पाया गया, इसलिए 206AA के तहत 20% TDS लागू होना चाहिए। लेकिन अदालत ने दो टूक कहा कि अंतरराष्ट्रीय कर संधियां घरेलू कानूनों से ऊपर मानी जाएंगी और DTAA एक बार लागू होने पर टैक्स की दर उसी से तय होगी। इसलिए PAN न होने पर भी 10% से अधिक टैक्स नहीं काटा जा सकता।

इस फैसले से भारतीय कंपनियों और IT उद्योग को बड़ी राहत मिली है। खासतौर पर उन व्यवसायों को जो विदेशी कंसल्टेंट्स, सेवा प्रदाताओं या MNCs को नियमित रूप से भुगतान करते हैं। अब इस तरह के सभी क्रॉस-बॉर्डर पेमेंट्स में TDS की अधिकतम सीमा 10% ही रहेगी, बशर्ते DTAA लागू हो। यह निर्णय भविष्य के अंतरराष्ट्रीय लेन-देन पर भी महत्वपूर्ण असर डालने वाला है।

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