लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए कई बार ऐसा होता है कि कदम पहले जितने तेज़ नहीं चलते और काम अपनी उम्मीदों के हिसाब से पूरा नहीं हो पाता। ऐसे समय में खुद को कोसना या गलती का बोझ ढोना सबसे नुकसानदेह होता है। असल में ज़रूरत होती है थोड़ी खुद के प्रति उदारता और थोड़ी स्मार्ट प्लानिंग की, ताकि आप फिर से उसी फोकस और ऊर्जा के साथ आगे बढ़ सकें। हर दिन एक जैसा नहीं होता और हर प्रयास एक जैसा परिणाम नहीं देता—इसलिए खुद पर अनावश्यक दबाव डालने से बेहतर है कि आप यह स्वीकार करें कि आप अपनी क्षमता के अनुसार ईमानदारी से प्रयास कर रहे हैं।
दिन के अंत में जब लगे कि जितना काम चाहिए था उतना नहीं हो पाया, तो यह भावना बहुत स्वाभाविक है। लेकिन निराशा और आत्मग्लानि आपकी कार्यक्षमता को कमजोर करती है। इसकी जगह अगर आप अपने प्रयासों को पहचानें, अपने काम को छोटे हिस्सों में बांटें, अपनी प्राथमिकताएं तय करें और यह सोचें कि आज आपने क्या सीखा, तो आपका मन भी संतुलित रहेगा और परफॉर्मेंस भी बेहतर होगी।
खुद की तारीफ करना और अपने काम को मान्यता देना आत्मविश्वास बढ़ाने का सरल और प्रभावी तरीका है। समय प्रबंधन को थोड़ा सा सुधारकर, एक समय में सिर्फ एक काम पर ध्यान देते हुए और आधे-अधूरे कार्यों पर ध्यान देने के बजाय उन कामों को याद करके जिन्हें आपने पूरा कर लिया—आप अपने दिन का अनुभव सकारात्मक बना सकते हैं। “मैंने आज अच्छा काम किया, मैंने अपनी पूरी कोशिश की”—ऐसे विचार धीरे-धीरे आपकी सोच को मजबूत बनाते हैं।
जब आपको लगे कि सहकर्मियों की गति से आप कदम नहीं मिला पा रहे या बॉस आपकी क्षमता पर संदेह कर रहे हैं, तब ज़रूरी है स्थिति का निष्पक्ष मूल्यांकन करना। कभी-कभी हम काम को उसके वास्तविक रूप से ज्यादा कठिन या खुद को उससे कम सक्षम मान लेते हैं। लेकिन जब आप बैठकर इस बात पर विचार करते हैं कि आपने दिनभर क्या-क्या किया, तो अक्सर लगता है कि आपकी मेहनत कम नहीं थी। यह सोच न सिर्फ तनाव कम करती है बल्कि आपका आत्मविश्वास भी वापस लाती है।
बेहतर बनने के लिए लगातार अभ्यास ही सबसे मजबूत रास्ता है। कोई भी कौशल, चाहे वह प्रोफेशनल हो या व्यक्तिगत, अभ्यास से ही निखरता है। इसलिए खुद को सीमित महसूस कराने वाले विचारों से दूरी बनाना जरूरी है। किसी काम को इसलिए मत छोड़ें कि लगता है आप इसे कर नहीं पाएंगे—बल्कि कोशिश करते रहें, क्योंकि अभ्यास ही आपकी क्षमता को बढ़ाता है।
काम को सरल और सुव्यवस्थित बनाने के लिए यह भी जरूरी है कि आप अपनी टू-डू लिस्ट को समय-समय पर दोबारा व्यवस्थित करें। नकारात्मक विचारों और अनावश्यक बोझ को पहचानकर जब आप अपनी जिम्मेदारियों को नया ढांचा देते हैं, तो आप अपने काम को और बेहतर संभाल पाते हैं। इससे आपकी क्षमता, प्राथमिकताएं और सीमाएं साफ होती हैं और आप जान पाते हैं कि सहकर्मी और बॉस आपसे वास्तव में क्या उम्मीद रखते हैं। यह स्पष्टता आपको तनाव से दूर और फोकस के करीब ले जाती है।
आखिर में, खुद के प्रति दयालु रहना और साथ ही स्मार्ट रणनीतियां अपनाना ही वह संतुलन है जो लक्ष्य की राह में आपको लगातार आगे बढ़ाता है।