गुरुवार सुबह ट्रेडिंग शुरू होते ही व्हर्लपूल इंडिया के शेयरों में जबरदस्त हलचल देखी गई। मार्केट खुलते ही स्टॉक करीब 11% टूटकर सीधे 1070 रुपये तक नीचे आ गया। इस तेज गिरावट के केंद्र में एक बड़ी ब्लॉक डील रही, जिसमें लगभग 1.5 करोड़ शेयरों की अदला-बदली हुई—जो कंपनी की करीब 11.8 फीसदी हिस्सेदारी के बराबर है। इतनी भारी मात्रा में शेयरों का एक साथ बाजार में उतरना स्वाभाविक रूप से निवेशकों में बेचैनी बढ़ाने वाला था।
डील के खरीदार और विक्रेता कौन हैं, इसकी आधिकारिक जानकारी अभी सामने नहीं आई है, लेकिन बाजार के सूत्र लगातार यही संकेत दे रहे हैं कि यह बिक्री प्रमोटर ग्रुप की तरफ से हुई है। एक्सचेंज की ओर से ब्लॉक डील का अंतिम अलोकेशन और सटीक मूल्य जल्द घोषित किया जाएगा। कंज्यूमर ड्यूरेबल सेक्टर में पिछले कुछ महीनों में हुई डील्स में यह लेनदेन सबसे बड़ी में से एक माना जा रहा है।
कुछ समय पहले तक उम्मीद थी कि प्रमोटर सिर्फ 95 लाख शेयर—करीब 7.5% हिस्सेदारी—बेचने वाले हैं और इसके लिए 1030 रुपये का फ्लोर प्राइस तय किया गया था। लेकिन बाद में संकेत मिला कि बिक्री का आकार बढ़ाकर करीब 11 फीसदी कर दिया गया। इस बदलते फैसले से साफ है कि प्रमोटर ग्रुप अपनी हिस्सेदारी को तेज़ी से घटा रहा है, हालांकि अभी तक इस पर औपचारिक बयान नहीं दिया गया है।
व्हर्लपूल ऑफ इंडिया में सबसे बड़ा स्टेक व्हर्लपूल मॉरिशस के पास है, जो अमेरिकी कंपनी व्हर्लपूल कॉरपोरेशन की सहायक इकाई है। पिछले दो वर्षों में प्रमोटर लगातार अपनी हिस्सेदारी घटा रहे हैं। 2023 के आखिर में प्रमोटर स्टेक जहां करीब 75% था, वही कई ब्लॉक डील्स के बाद अब यह लगभग 51% के आसपास आ गया है। माना जा रहा है कि यह पूरी प्रक्रिया ग्लोबल स्तर पर कंपनी की व्यावसायिक रणनीति और पूंजी के पुनर्संयोजन का हिस्सा है।
फरवरी 2024 की सबसे बड़ी सेल में प्रमोटर ने लगभग 3 करोड़ शेयर बाजार में उतारे थे, जिसके जरिए करीब 468 मिलियन डॉलर जुटाए गए। इस धन का इस्तेमाल वैश्विक कर्ज कम करने और बिज़नेस पोर्टफोलियो को पुनर्गठित करने में किया गया। दिलचस्प बात यह है कि कंपनी के शेयरों पर प्रमोटर की ओर से कोई भी हिस्सेदारी गिरवी नहीं रखी गई है।
जैसे-जैसे प्रमोटर का नियंत्रण कम हो रहा है, वैसे-वैसे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों, म्यूचुअल फंड्स और घरेलू संस्थानों की दखल बढ़ी है, जिससे कंपनी का फ्री-फ्लोट बढ़ा और ट्रेडिंग वॉल्यूम भी मजबूत हुआ है। बाजार फिलहाल इस बदलाव को दो हिस्सों में बांटकर देख रहा है—एक तरफ प्रमोटर का धीरे-धीरे बाहर निकलना निवेशकों के मन में सवाल खड़े करता है, जबकि दूसरी ओर संस्थागत पकड़ मजबूत होने से स्टॉक में स्थिरता और पारदर्शिता से जुड़ी उम्मीदें भी बढ़ती हैं।
आने वाले दिनों में यह देखा जाएगा कि ब्लॉक डील के बाद बाजार इस नए संतुलन को किस तरह से स्वीकार करता है और कंपनी की लंबी अवधि की रणनीति किस दिशा में आगे बढ़ती है।