नवंबर का महीना गुड्स एंड सर्विस टैक्स के लिए उम्मीद से कमजोर रहा। जीएसटी कलेक्शन गिरकर 1.7 लाख करोड़ रुपये पर आ गया, जो फरवरी 2024 के बाद सबसे कम आंकड़ा है। सालाना आधार पर भी 0.7% की गिरावट दर्ज की गई। वजह बिल्कुल साफ है—सरकार की रेट रेशनलाइजेशन पॉलिसी, यानी कई सामानों पर जीएसटी दर घटा देने का सीधा असर अब राजस्व पर दिखने लगा है।
सितंबर में लागू हुए GST 2.0 के तहत 12% और 28% वाले पुराने टैक्स स्लैब हटा दिए गए। ज्यादातर उत्पाद अब 5% और 18% वाले स्लैब में शिफ्ट कर दिए गए हैं, जबकि सिर्फ लक्जरी और ‘सिन गुड्स’ (जैसे तंबाकू) को 40% के नए स्लैब में रखा गया। दिवाली वाले अक्टूबर में खपत बढ़ी, इसलिए कलेक्शन 1.95 लाख करोड़ पहुंच गया था, लेकिन नवंबर में रेट कटौती की असली तस्वीर सामने आ गई—और कलेक्शन ठहर गया।
नवंबर में सेंट्रल जीएसटी (CGST) का आंकड़ा हल्के सुधार के साथ 34,843 करोड़ पहुंचा, लेकिन स्टेट जीएसटी (SGST) 42,522 करोड़ और आईजीएसटी (IGST) 46,934 करोड़ पर आ गए—दोनों में गिरावट साफ दिखी। रिफंड कम जारी होने की वजह से नेट कलेक्शन में हल्की 1.3% बढ़त जरूर दिखी, लेकिन यह तकनीकी उछाल है, वास्तविक वृद्धि नहीं।
सबसे बड़ा झटका सेस कलेक्शन पर पड़ा। पिछले साल नवंबर में 12,950 करोड़ का सेस आया था, जो इस बार सिर्फ 4,006 करोड़ पर सिमट गया—पूरी दो-तिहाई गिरावट। विशेषज्ञ बताते हैं कि GST 2.0 में तंबाकू को छोड़कर लगभग सभी उत्पादों से सेस हट गया, इसलिए सेस राजस्व लगभग गायब हो गया है।
कुल मिलाकर नवंबर की रिपोर्ट यह संकेत देती है कि उपभोक्ता सामानों पर टैक्स बोझ तो कम हुआ है, लेकिन सरकार के राजस्व पर इसका दवाब दिखाई देने लगा है। अब नजर इस बात पर रहेगी कि दिसंबर और जनवरी में खपत कितनी उभरती है—क्योंकि आने वाले बजट से पहले यह ट्रेंड सरकार की रणनीति तय करेगा।