दुर्ग में सोमवार का दिन जमीन कारोबारियों के लिए सबसे तनावपूर्ण साबित हुआ। नई कलेक्टर गाइडलाइंस के कारण जमीन की कीमतों में अचानक 5 से 9 गुना तक की उछाल ने पूरे जिले के व्यापारियों में भारी नाराज़गी पैदा कर दी। पांच दिनों से जारी विरोध सोमवार को उस वक्त उग्र हो गया जब कलेक्ट्रेट और रजिस्ट्रार कार्यालय के बाहर प्रदर्शन कर रहे व्यापारियों को रोकने के दौरान पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। सड़क पर दौड़ा-दौड़ाकर पीटते जवानों की तस्वीरें और वीडियो देखते ही देखते पूरे शहर में फैल गए।
लाठीचार्ज के दौरान कई लोग घायल हुए और कई को हिरासत में भी लिया गया। कलेक्ट्रेट परिसर के बाहर छह थानों की पुलिस तैनात करनी पड़ी। कांग्रेस ने भी मौके पर पहुंचकर काले झंडे दिखाए, पुतला दहन किया और सरकार पर जमीन कारोबारियों की आजीविका पर हमला करने का आरोप लगाया।
प्रदर्शन स्थल पर मौजूद व्यापारियों का कहना था कि जमीन का व्यवसाय ही उनकी रोजी-रोटी है। बुजुर्ग व्यापारी कन्हैया मिश्रा ने कहा कि इस उम्र में वे न नौकरी कर सकते हैं और न कोई नया धंधा शुरू। “लाठीचार्ज निंदनीय है। सरकार ने जो किया, वह पूरी तरह गलत है,” उन्होंने कहा।
दोपहर एक बजे के आसपास प्रदर्शनकारी रजिस्ट्रार कार्यालय की ओर बढ़ने लगे। पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाकर रोका, लेकिन भीड़ आगे बढ़ती रही। इसी दौरान हल्का बल प्रयोग शुरू हुआ, जो देखते ही देखते कठोर कार्रवाई में बदल गया। पुलिस का कहना है कि भीड़ में मौजूद कुछ लोगों ने पहले धक्का-मुक्की की और पानी के पाउच फेंके, जिससे हालात बिगड़े। अधिकारियों का दावा है कि बिना अनुमति जुलूस निकालना और सड़क जाम करना ही सबसे बड़ी वजह थी।
लेकिन असली सवाल यह है कि जमीन कारोबारियों में इतना गुस्सा आखिर क्यों है?
इसके पीछे कारण हैं नई गाइडलाइंस, जिन्होंने जमीन के रेट को एक झटके में आसमान पर पहुंचा दिया। पहले जिस प्लॉट को सरकार 30% डिस्काउंट पर मानकर कीमत तय करती थी, अब वही प्लॉट 100% बाजार मूल्य पर गिना जाएगा। रजिस्ट्रेशन पर लगने वाला 4% शुल्क घटाया नहीं गया, जबकि कीमत कई गुना बढ़ चुकी है। व्यापारियों का कहना है कि कीमत 100% कर दी गई है तो रजिस्ट्रेशन ड्यूटी 0.8% कर देनी चाहिए ताकि बोझ संतुलित रहे।
नया सिस्टम कहता है कि एक ही प्लॉट को अब दो हिस्सों में बांटकर सड़क वाला भाग महंगी दर से और भीतर का भाग अलग दर से आंका जाएगा। इससे कुल कीमत कई गुना अधिक हो जाती है। उदाहरण के तौर पर पहले 10 लाख की जमीन अब 70 लाख में मूल्यांकित हो रही है। कई मामलों में बढ़ोतरी 725% तक दर्ज हुई है।
नवा रायपुर के आसपास के गांवों को शहरी क्षेत्र घोषित करने से भी दाम बढ़े हैं। ग्रामीण इलाकों की छोटी–मोटी पक्की सड़कों को “मुख्य मार्ग” मान लेने से उन क्षेत्रों की जमीनें भी शहर जैसी महंगी हो गईं। भारतमाला प्रोजेक्ट के आसपास 300%–500% तक की भारी बढ़ोतरी ने भी विवाद को हवा दी है।
व्यापारी साफ कह रहे हैं कि अगर सरकार गाइडलाइंस में सुधार नहीं करेगी, तो वे रजिस्ट्री का बायकॉट करेंगे।
दुर्ग में सोमवार को जो दृश्य सामने आए, उसने यह स्पष्ट कर दिया कि जमीन की नई कीमतें सिर्फ कागज़ पर नहीं बढ़ीं—उन्होंने लोगों की आजीविका, कारोबार, और भविष्य की चिंताओं को भी आग लगा दी है।
लाठीचार्ज और प्रदर्शन से जुड़ी ये तस्वीरें देखिए…


