साइबर-अटैक से सुरक्षा देने और दुनिया भर की वेबसाइट्स को तेज़ व सुरक्षित रखने वाला क्लाउडफ्लेयर शुक्रवार को फिर बड़े आउटेज का शिकार हुआ। इसकी वजह से भारत में जीरोधा, ग्रो, एंजेल वन, अपस्टॉक्स, कैनवा, जूम, चैटजीपीटी, स्पॉटिफाई समेत हजारों प्लेटफॉर्म अचानक धीमे या पूरी तरह बंद हो गए। यह स्थिति करीब आधे घंटे तक बनी रही, जिसके दौरान लाखों यूजर्स को वेबसाइट खोलने, लॉगिन करने, पेज लोड करने और डेटा एक्सेस करने में परेशानी हुई।
क्लाउडफ्लेयर ने बताया कि कंपनी के डैशबोर्ड और APIs में बड़ी दिक्कत आई थी, जिससे रिक्वेस्ट फेल होने लगीं और सर्विसेज क्रैश जैसी स्थिति में पहुंच गईं। दोपहर 1:50 बजे से आउटेज शुरू हुआ और डाउनडिटेक्टर पर 2100 से ज्यादा यूजर रिपोर्ट्स मिनटों में दर्ज हो गईं। यह 18 नवंबर को हुए ग्लोबल आउटेज के मात्र 16 दिन बाद दूसरी बड़ी घटना है।
इस बार सिर्फ भारतीय प्लेटफॉर्म ही नहीं, कैनवा, जूम, शॉपिफाई, स्पॉटिफाई, चैटजीपीटी और वैलोरेंट जैसे अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म भी डिस्टर्ब हुए। जीरोधा ने कुछ देर बाद बताया कि समस्या ठीक हो चुकी है, जबकि ग्रो समेत अन्य कंपनियों ने भी पुष्टि की कि क्लाउडफ्लेयर आउटेज ही इसका कारण था।
18 नवंबर को हुए बड़े हादसे में X (ट्विटर), व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, उबर, चैटजीपीटी और 1.4 करोड़ से ज्यादा वेबसाइट्स प्रभावित हुई थीं। क्लाउडफ्लेयर दुनिया की 20% वेबसाइट्स को कंटेंट डिलीवरी, सुरक्षा और रूटिंग सर्विस देता है, इसलिए इसके डाउन होते ही इंटरनेट का बड़ा हिस्सा ठहर जाता है।
साइबर सुरक्षा और क्लाउड सर्विसेज में क्लाउडफ्लेयर खुद को “इंटरनेट का इम्यून सिस्टम” कहता है—क्योंकि इसकी टेक्नोलॉजी रोज़ अरबों साइबर अटैक रोकती है और ग्लोबल ट्रैफिक को सुरक्षित रूट करती है। कंपनी हर तिमाही 500 मिलियन डॉलर से ज्यादा कमाती है और 125 देशों में काम करती है।
लेकिन लगातार दो आउटेज ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या इतनी बड़ी ग्लोबल डिपेंडेंसी सुरक्षित है? और क्या भविष्य में इंटरनेट को एक वैकल्पिक डीसेंट्रलाइज्ड मॉडल की जरूरत होगी?