छत्तीसगढ़ में जमीन रजिस्ट्री की नई गाइडलाइन को लेकर विवाद और तेज हो गया है। व्यापारी संगठनों, आम नागरिकों और विपक्ष के विरोध के बीच कांग्रेस अब सीधे जमीन कारोबारियों के बीच पहुँच गई है। रायपुर में करीब दो घंटे तक चली बैठक में रजिस्ट्री के सार्वजनिक बहिष्कार और चरणबद्ध आंदोलन की रणनीति पर चर्चा हुई। बैठक में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, पूर्व विधायक और पूर्व महापौर प्रमोद दुबे मौजूद रहे, जिन्होंने सरकार पर निशाना साधते हुए इसे “जनविरोधी और अव्यावहारिक फैसला” बताया।
प्रमोद दुबे ने कहा कि साय सरकार बनते ही गलत निर्णयों की श्रृंखला शुरू हो गई है—बिजली बिल हाफ का मुद्दा हो या नई पंजीयन गाइडलाइन का थोपना, हर कदम ने आम जनता की जेब पर सीधा बोझ डाला है। उनका आरोप था कि मंत्री ओपी चौधरी द्वारा लागू की गई नई गाइडलाइन आमतौर पर वित्तीय वर्ष की शुरुआत में लागू होती है, लेकिन इसे बीच साल में लागू कर किसानों और व्यापारियों पर अचानक आर्थिक दबाव डाल दिया गया।
दुबे ने याद दिलाया कि रमन सिंह के शासन में बंद की गई “छोटी रजिस्ट्री” को भूपेश बघेल सरकार ने फिर शुरू किया था और जमीन की गाइडलाइन में 30% की कमी कर लोगों को बड़ी राहत दी थी। इसका असर यह रहा कि पांच साल तक जमीन कारोबार स्थिर रहा और बाजार व्यवस्थित तरीके से चला। लेकिन वर्तमान सरकार द्वारा लागू की गई गाइडलाइन न सिर्फ जमीन कारोबार को चोट पहुँचाती है, बल्कि निवेश और छोटे व्यवसाय के माहौल को भी नुकसान पहुंचाती है।
इस बीच व्यापारियों के बीच कांग्रेस की सक्रियता ने सरकार पर दबाव स्पष्ट बढ़ा दिया है।
उधर, यह मुद्दा अब भाजपा के भीतर भी असहजता पैदा कर रहा है। रायपुर के भाजपा सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को पत्र लिखकर नई गाइडलाइन को तत्काल स्थगित करने की मांग की है। उन्होंने साफ कहा कि कलेक्टर गाइडलाइन दरों में 100% से 800% तक की वृद्धि अव्यावहारिक है और इससे किसान, छोटे व्यापारी, कुटीर उद्योग, मध्यम वर्ग, रियल एस्टेट सेक्टर—सब पर भारी असर पड़ेगा। बृजमोहन के मुताबिक सरकार का यह दावा गलत है कि इससे किसानों को भूमि अधिग्रहण में ज्यादा मुआवजा मिलेगा, क्योंकि अधिग्रहण में सिर्फ 1% जमीन आती है, जबकि 99% जनता पर अनावश्यक बोझ पड़ रहा है।
उन्होंने पंजीयन शुल्क को फिर से 0.8% करने और पुरानी गाइडलाइन बहाल करने की मांग की है।
रायपुर की बैठक के बाद माहौल और गरम है—रजिस्ट्री के सामाजिक बहिष्कार से लेकर व्यापक प्रदर्शन तक की तैयारी अब तेज हो रही है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा राज्य सरकार के लिए एक बड़ी राजनीतिक चुनौती बन सकता है।