बंगाल के बेलडांगा में बड़ा धार्मिक–राजनीतिक विमर्श: निलंबित TMC विधायक हुमायूं कबीर ने कड़ी सुरक्षा में बाबरी मस्जिद की नींव रखी, लाखों की भीड़ ईंट लेकर पहुंची; विवाद और सियासत दोनों उफान पर

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पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले का बेलडांगा शनिवार को उस दृश्य का साक्षी बना, जिसे लेकर पूरे प्रदेश में बहस छिड़ गई है। TMC से निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने भरी सुरक्षा व्यवस्था के बीच मंच पर मौलवियों के साथ फीता काटकर उस मस्जिद की आधारशिला रखी, जिसे वे अयोध्या की बाबरी मस्जिद की तर्ज पर बनवाने का ऐलान पहले ही कर चुके थे। जैसे ही उद्घाटन हुआ, “नारा-ए-तकबीर, अल्लाहु अकबर” के जयघोष वातावरण में गूंज उठे और पलभर में कार्यक्रम धार्मिक प्रतीकवाद और राजनीतिक संदेश—दोनों का केंद्र बन गया।

सबसे बड़ा दृश्य वह था, जब सुबह से ही लाखों लोग ईंट लेकर कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने लगे। कोई सिर पर ईंट लिए आया, कोई वैन और रिक्शा में, तो कोई ट्रैक्टर-ट्रॉली भरकर। मालदा समेत कई जिलों से निर्माण सामग्री से लदे सैकड़ों वाहन बेलडांगा में एक के बाद एक पहुंचते गए। पूरे बेलडांगा और आसपास के इलाके को हाई अलर्ट पर रखा गया था। 3,000 से ज्यादा सुरक्षाबल, जिसमें सेंट्रल आर्म्ड फोर्स, RAF, BSF और स्थानीय पुलिस शामिल थी, हर मोड़ पर तैनात दिखे। 25 बीघा इलाके में 150 फीट लंबा, 80 फीट चौड़ा विशाल मंच बनाया गया था, जिस पर 400 से ज्यादा लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई थी। यहां तक कि कार्यक्रम में शामिल होने वालों के लिए 60 हजार से अधिक बिरयानी पैकेट तैयार किए गए और दो हजार से ज्यादा वॉलंटियर व्यवस्था संभालते दिखे—एक आयोजन, जो धक्का नहीं, बल्कि जानबूझकर किया गया शक्ति–प्रदर्शन नजर आया।

हुमायूं कबीर पहले ही घोषणा कर चुके थे कि 6 दिसंबर—बाबरी ढांचे के विध्वंस की बरसी—के दिन वे नींव रखेंगे। TMC ने 4 दिसंबर को उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया, यह कहते हुए कि पार्टी का इस कार्यक्रम से कोई लेना–देना नहीं है। कबीर ने निलंबन को नजरअंदाज करते हुए सार्वजनिक मंच से कहा कि मस्जिद निर्माण रोकने की कई साज़िशें रची गईं, लेकिन उन्हें कोई ताकत नहीं रोक सकती; वे हाईकोर्ट के आदेशों के अनुसार कार्यक्रम करेंगे। हाईकोर्ट ने भी कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगाने से इनकार किया था, केवल राज्य सरकार को शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी सौंपी थी। इसी निर्णय के आधार पर कबीर ने मस्जिद की नींव रखी।

कार्यक्रम में सऊदी अरब से धार्मिक नेता भी पहुंचे, और भीड़ को संबोधित करते हुए कबीर ने इसे “ऐतिहासिक क्षण” बताया। लेकिन जहां भीड़ थी, वहां राजनीति की परछाई भी मौजूद थी। भाजपा नेताओं ने पूरे आयोजन को “मुस्लिम वोट बैंक को साधने की कवायद” बताया। दिलीप घोष ने इसे वोटों की राजनीति कहा, जबकि अमित मालवीय ने ममता बनर्जी पर राज्य की संवेदनशीलता से खेलने का आरोप लगाया और लिखा कि बेलडांगा का अशांत इतिहास इसे बेहद संवेदनशील बनाता है, जहां अशांति भड़कना राज्य और राष्ट्रीय सुरक्षा—दोनों के लिए ख़तरनाक हो सकता है।

इस विवाद की पृष्ठभूमि भी कम दिलचस्प नहीं। 28 नवंबर को बेलडांगा में बाबरी मस्जिद शिलान्यास के पोस्टर लगने के बाद हंगामा शुरू हुआ। बीजेपी ने विरोध किया, कांग्रेस के कुछ नेताओं ने समर्थन जताया, और TMC ने दूरी बनाते हुए इसे कबीर की “व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा” बताया। बताया गया कि वे यह सब इसलिए कर रहे हैं ताकि भविष्य में रेठनगर सीट से चुनाव लड़ सकें। निलंबन के बाद कबीर ने नई पार्टी बनाने और 135 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया।

इस धार्मिक–राजनीतिक शोर के बीच एक और सवाल फिर उठ खड़ा हुआ—अयोध्या में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुस्लिम पक्ष को दी गई पांच एकड़ जमीन पर मस्जिद निर्माण आखिर अब तक क्यों शुरू नहीं हुआ? धन्नीपुर में आवंटित भूमि पर इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन संरचना बनाने की योजना तो दे चुका है, लेकिन ADA से लेआउट की मंजूरी नहीं मिलने के कारण निर्माण की एक ईंट भी नहीं लगी। राम मंदिर के निर्माण और उद्घाटन के बाद भी धन्नीपुर की जमीन अब तक खामोश पड़ी है।

बेलडांगा में मस्जिद की नींव ने सिर्फ ईंटें नहीं रखीं—इसने बंगाल की राजनीति, धार्मिक भावनाओं, और राष्ट्रीय विमर्श में एक और परत जोड़ दी है। भीड़, सुरक्षा, विरोध, समर्थन—सब मिलकर यह संदेश दे रहे हैं कि यह सिर्फ शिलान्यास नहीं था, बल्कि चुनावी, सामाजिक और धार्मिक समीकरणों का एक नया अध्याय भी था, जिसकी गूंज आने वाले दिनों में और तेज सुनाई देगी।

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