संसद में ‘वंदे मातरम’ पर ऐतिहासिक बहस, पीएम मोदी करेंगे उद्घाटन, पूरे देश की निगाहें आज के सत्र पर

Spread the love

संसद का शीतकालीन सत्र आज एक भावनात्मक और ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनने जा रहा है, जब राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर लोकसभा में विशेष चर्चा आयोजित की जाएगी। इस अहम बहस की शुरुआत आज दोपहर ठीक 12 बजे प्रधानमंत्री Narendra Modi खुद करेंगे। वहीं राज्यसभा में इसी विषय पर मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री Amit Shah चर्चा का नेतृत्व करेंगे। सरकार की ओर से इसे राष्ट्रभावना, एकता और स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत से जोड़कर देखा जा रहा है।

जानकारी के मुताबिक लोकसभा में होने वाली इस विशेष बहस में विपक्ष के उपनेता गौरव गोगोई सहित कुल आठ सांसद अपने विचार रखेंगे। चर्चा का समापन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के संबोधन से होगा। गौरतलब है कि सरकार ने हाल ही में 7 नवंबर को ‘वंदे मातरम’ की 150वीं जयंती देशभर में मनाई थी और इसके बाद इसे संसद की कार्यवाही का हिस्सा बनाने का फैसला लिया गया, ताकि नई पीढ़ी को इसके ऐतिहासिक महत्व से जोड़ा जा सके।

इस बहस के बीच प्रधानमंत्री मोदी के हालिया बयान को लेकर भी खासा राजनीतिक माहौल गरम है। पीएम मोदी ने कहा था कि वर्ष 1937 में ‘वंदे मातरम’ के टुकड़े किए गए थे, जिससे विभाजनकारी सोच को बढ़ावा मिला। उन्होंने सवाल उठाया था कि राष्ट्र-निर्माण के इस महामंत्र के साथ ऐसा अन्याय क्यों हुआ। उनके अनुसार, वही मानसिकता आज भी देश की एकता के सामने चुनौती बनकर खड़ी है। उनके इस बयान के बाद राजनीतिक और सामाजिक हलकों में नई बहस छिड़ गई है।

इसी बीच, चर्चा शुरू होने से पहले ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना साजिद रशीदी की प्रतिक्रिया भी सामने आई है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय को राष्ट्रीय गीत से कोई नफरत नहीं है। उनकी आपत्ति केवल गीत के उन अंशों को लेकर है, जिनमें मूर्ति पूजा का भाव झलकता है। रशीदी के मुताबिक ‘वंदे मातरम’ की शुरुआती दो पंक्तियां केवल देश की सुंदरता, समृद्धि और मातृभूमि के गौरव का वर्णन करती हैं, इसलिए उन्हें गाने में किसी भी मुसलमान को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

‘वंदे मातरम’ केवल एक गीत नहीं बल्कि आजादी के संग्राम की आत्मा रहा है। इसे Bankim Chandra Chattopadhyay ने लिखा था और पहली बार 7 नवंबर 1875 को ‘बंगदर्शन’ पत्रिका में प्रकाशित किया गया था। बाद में यह 1882 में उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंदमठ’ का हिस्सा बना। इस गीत को स्वर देने का कार्य Rabindranath Tagore ने किया, जिसके बाद यह स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा का सबसे बड़ा स्रोत बन गया। आजादी के बाद 24 जनवरी 1950 को इसे आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया गया।

आज संसद में होने जा रही यह चर्चा सिर्फ एक औपचारिक बहस नहीं, बल्कि देश की सांस्कृतिक पहचान, स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत और राष्ट्रीय एकता के भाव को दोबारा जीवित करने का प्रयास मानी जा रही है। पूरे देश की नजरें अब इस बात पर टिकी हैं कि इस ऐतिहासिक बहस में कौन-कौन से विचार सामने आते हैं और यह चर्चा किस दिशा में आगे बढ़ती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *