छत्तीसगढ़ सरकार ने सरेंडर कर चुके नक्सलियों के लिए एक बड़ा और निर्णायक कदम उठाया है। बुधवार को हुई साय कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई कि जो नक्सली हिंसा का रास्ता छोड़ चुके हैं और अच्छा आचरण अपना रहे हैं, उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को चरणबद्ध तरीके से वापस लिया जाएगा। इस फैसले के साथ ही सरकार ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह कानूनी ढांचे के भीतर, जांच-पड़ताल और सिफारिशों के आधार पर आगे बढ़ेगी। इस अहम निर्णय के पीछे मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की अगुवाई में सरकार की वह नीति दिख रही है, जिसमें पुनर्वास, विश्वास और मुख्यधारा में वापसी को प्राथमिकता दी जा रही है।
सरकार ने यह व्यवस्था बनाई है कि सरेंडर नक्सलियों के मामलों की समीक्षा के लिए अब जिला स्तर पर विशेष समितियां गठित की जाएंगी। यह समिति संबंधित सरेंडर नक्सली के खिलाफ दर्ज मामलों की विस्तृत जांच करेगी और यह तय करेगी कि किन मामलों को वापस लेने की अनुशंसा की जा सकती है। समिति अपनी रिपोर्ट पुलिस मुख्यालय को सौंपेगी, जिसके बाद पुलिस मुख्यालय अपनी सिफारिशों के साथ प्रस्ताव को आगे बढ़ाएगा। इसके बाद कानून विभाग की राय ली जाएगी और फिर यह मामला कैबिनेट उप-समिति के सामने प्रस्तुत होगा। उप-समिति जिन मामलों को उपयुक्त मानेगी, उन्हें अंतिम मंजूरी के लिए मुख्य कैबिनेट के सामने रखा जाएगा।
जहां कहीं भी मामले केंद्रीय कानूनों से जुड़े होंगे या केंद्र सरकार की अनुमति आवश्यक होगी, वहां भारत सरकार से औपचारिक स्वीकृति ली जाएगी। बाकी मामलों में जिला मजिस्ट्रेट के माध्यम से सरकारी वकील अदालत में केस वापसी की प्रक्रिया पूरी करेंगे। सरकार का साफ संदेश है कि यह पूरी प्रक्रिया न तो जल्दबाजी में होगी और न ही बिना कानूनी कसौटी के।
इसी बैठक में छत्तीसगढ़ सरकार ने कानूनों के सरलीकरण को लेकर भी एक ऐतिहासिक फैसला लिया है। जन विश्वास विधेयक-2025 के दूसरे संस्करण को मंजूरी दे दी गई है। इसके तहत राज्य के 11 विभागों से जुड़े 14 अधिनियमों के कुल 116 प्रावधानों में संशोधन किया जाएगा। इन संशोधनों का मकसद यह है कि छोटे-मोटे उल्लंघनों को आपराधिक मामलों की बजाय अब प्रशासनिक दंड की श्रेणी में रखा जाए, जिससे आम लोगों को अदालतों के चक्कर न लगाने पड़ें और मामलों का तेजी से निपटारा हो सके। सरकार का दावा है कि इससे ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और ईज ऑफ लिविंग दोनों को बड़ा बढ़ावा मिलेगा।
इसके साथ ही वित्तीय मोर्चे पर भी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। 2025–26 के लिए प्रथम अनुपूरक अनुमान यानी सप्लीमेंट्री एस्टीमेट को पेश करने के लिए छत्तीसगढ़ विनियोग विधेयक को भी कैबिनेट की स्वीकृति मिल गई है। यह राज्य की वित्तीय प्राथमिकताओं और नई नीतियों के क्रियान्वयन के लिए अहम माना जा रहा है। छत्तीसगढ़ अब देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहां जन विश्वास विधेयक का दूसरा संस्करण लागू करने की दिशा में ठोस कदम बढ़ाया गया है।
इससे पहले हुई कैबिनेट बैठक में भी सरकार कई बड़े जनहितकारी फैसले ले चुकी है। मुख्यमंत्री ऊर्जा राहत जन अभियान यानी M-URJA को मंजूरी दी गई थी, जिसके तहत 1 दिसंबर 2025 से घरेलू उपभोक्ताओं को मिलने वाली 50 प्रतिशत बिजली छूट की सीमा 100 यूनिट से बढ़ाकर 200 यूनिट कर दी गई है। वहीं प्रधानमंत्री सूर्यघर मुफ्त बिजली योजना के तहत 1 किलोवॉट सोलर प्लांट पर 15,000 रुपये और 2 किलोवॉट या उससे अधिक क्षमता वाले सोलर प्लांट पर 30,000 रुपये तक अतिरिक्त सब्सिडी देने का भी निर्णय हुआ, जिससे लोगों की बिजली खपत शून्य के करीब लाई जा सके।
उच्च शिक्षा को मजबूती देने के लिए छत्तीसगढ़ निजी विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक 2025 और दुकान-स्थापना संशोधन विधेयक 2025 को भी मंजूरी दी गई है। सरकार का मानना है कि इन बदलावों से व्यापार करना आसान होगा, निवेश बढ़ेगा और राज्य में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।
कुल मिलाकर, सरेंडर नक्सलियों के मामलों की वापसी, कानूनों का सरलीकरण और वित्तीय सुधारों से जुड़े ये फैसले यह संकेत देते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार अब एक साथ सुरक्षा, विकास और विश्वास—तीनों मोर्चों पर आक्रामक तरीके से आगे बढ़ रही है। यह देखना अब दिलचस्प होगा कि इन नीतिगत फैसलों का असर ज़मीन पर कितनी तेजी और मजबूती से दिखाई देता है।