IDBI बैंक के निजीकरण को लेकर चल रही लंबे समय की प्रक्रिया निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है। सरकार और LIC मिलकर बैंक में अपनी 60.72% नियंत्रक हिस्सेदारी बेचने की तैयारी में हैं, जिसकी वर्तमान बाजार कीमत करीब 7 अरब डॉलर (₹1.02 लाख करोड़ से अधिक) आंकी जा रही है। इसी बीच बोली प्रक्रिया में टोरंटो-आधारित फेयरफैक्स फाइनेंशियल सबसे मजबूत दावेदार के रूप में उभर कर सामने आई है।
भारतीय–कनाडाई अरबपति प्रेम वत्स द्वारा संचालित फेयरफैक्स, मौजूदा मार्केट वैल्यू के आधार पर बैंक को पूरी तरह नकद ऑफर देने पर विचार कर रही है—एक ऐसा कदम जो सरकार के लिए डील को और आकर्षक बना देता है, क्योंकि केंद्र आमतौर पर सरल और पारदर्शी कैश ट्रांजैक्शन को ही प्राथमिकता देती है।
दूसरी ओर, कोटक महिंद्रा बैंक भी रेस में बना हुआ है और वह कैश + शेयर मॉडल के मिश्रण से बोली लगाने की रणनीति तैयार कर रहा है। IDBI बैंक के शेयर पिछले तीन साल में लगभग तीन गुना चढ़ चुके हैं, जिससे खरीदारों की रुचि और निवेशकों का भरोसा दोनों ही बढ़े हैं। बैंक का मार्केट कैप अब ₹1 लाख करोड़ के करीब पहुंच चुका है, जो बोली प्रक्रिया को और प्रतिस्पर्धी बनाता है।
तीसरा दावेदार पीछे हटा
पहले इस डील में Emirates NBD भी संभावित खरीदार माना जा रहा था, लेकिन हाल ही में RBL बैंक में निवेश के बाद उसने IDBI प्रक्रिया में अपनी भागीदारी पर दोबारा विचार शुरू कर दिया है, जिससे अब मुख्य मुकाबला फेयरफैक्स और कोटक के बीच दिख रहा है।
RBI की कसौटी पर दोनों दावेदार पास
फेयरफैक्स और कोटक, दोनों ही पहले से RBI की fit and proper योग्यता पर खरे उतर चुके हैं। फेयरफैक्स को 2018 में CSB बैंक में कंट्रोलिंग हिस्सेदारी खरीदने की अनुमति भी मिल चुकी है।
संभावित खरीदारों को पिछले वर्ष डिजिटल डेटा रूम तक पहुंच दी गई थी, ताकि वे बैंक की वित्तीय स्थिति, जोखिम और संचालन का विस्तृत आकलन कर सकें। सरकार और LIC ने ड्राफ्ट शेयर परचेज एग्रीमेंट (SPA) भी साझा कर दिया था, जिससे बोलीदाताओं को सौदे की शर्तों और दायित्वों की स्पष्ट समझ मिल सके।
निजीकरण की दिशा में बड़ा कदम
यदि फेयरफैक्स इस सौदे को जीतता है, तो यह भारत के बैंकिंग इतिहास की सबसे बड़ी निजीकरण डील में से एक होगी। इससे—
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IDBI बैंक को नई रणनीतिक दिशा
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ताज़ी पूंजी
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और बेहतर गवर्नेंस संरचना
मिलने की उम्मीद है।
सरकार के लिए यह डील न सिर्फ निजीकरण को गति देने का अवसर है, बल्कि राजस्व बढ़ाने का भी महत्वपूर्ण साधन माना जा रहा है।
बोली जमा करने की अंतिम तिथि दिसंबर के अंत तय है, हालांकि प्रक्रिया जनवरी 2026 की शुरुआत तक बढ़ सकती है।