कलाम से पहले वाजपेयी को राष्ट्रपति बनाना चाहती थी भाजपा: किताब का दावा, अटलजी ने आडवाणी को PM बनाने का प्रस्ताव ठुकराया

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भारत के 11वें राष्ट्रपति के चयन को लेकर साल 2002 की राजनीति में क्या कुछ चल रहा था, इसका एक अहम और चौंकाने वाला खुलासा अब सामने आया है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी और उनके मीडिया सलाहकार रहे अशोक टंडन ने अपनी किताब ‘अटल संस्मरण’ में दावा किया है कि भाजपा ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर सहमति बनने से पहले स्वयं अटल बिहारी वाजपेयी को राष्ट्रपति पद संभालने का प्रस्ताव दिया था। इसके साथ ही पार्टी की ओर से यह भी कहा गया था कि वाजपेयी प्रधानमंत्री पद छोड़कर लालकृष्ण आडवाणी को यह जिम्मेदारी सौंप दें।

किताब के मुताबिक, भाजपा नेतृत्व चाहता था कि अटल बिहारी वाजपेयी राष्ट्रपति भवन जाएं और पार्टी की कमान प्रधानमंत्री के रूप में आडवाणी संभालें। हालांकि वाजपेयी ने इस प्रस्ताव को पूरी तरह अस्वीकार कर दिया। अशोक टंडन के अनुसार, अटलजी ने साफ शब्दों में कहा था कि वे इस तरह के किसी कदम के पक्ष में नहीं हैं और न ही इसका समर्थन करेंगे। वाजपेयी का मानना था कि सत्ता के इस तरह के हस्तांतरण से न तो देश का हित सधेगा और न ही राजनीतिक संतुलन बना रहेगा।

अशोक टंडन ने 17 दिसंबर 2025 को वाजपेयी की जयंती के अवसर पर अपनी इस किताब का विमोचन किया। टंडन 1998 से 2004 तक वाजपेयी के मीडिया सलाहकार रहे और उस दौर की कई अंदरूनी राजनीतिक घटनाओं के साक्षी भी थे। उल्लेखनीय है कि अटल बिहारी वाजपेयी 1999 से 2004 तक लगातार पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने थे।

किताब में यह भी बताया गया है कि वाजपेयी देश के 11वें राष्ट्रपति के चयन को लेकर पक्ष और विपक्ष की सर्वसम्मति चाहते थे। इसी सोच के तहत उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व से सीधी बातचीत का रास्ता चुना। टंडन के अनुसार, एक अहम बैठक में सोनिया गांधी, प्रणब मुखर्जी और डॉ. मनमोहन सिंह शामिल हुए थे। इसी बैठक में वाजपेयी ने पहली बार औपचारिक रूप से यह जानकारी दी कि एनडीए ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने का फैसला किया है।

इस घोषणा के बाद बैठक में कुछ देर तक सन्नाटा छा गया था। चुप्पी तोड़ते हुए सोनिया गांधी ने वाजपेयी से कहा था कि वे इस नाम से हैरान हैं, लेकिन इस पर विचार करने के अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है। बाद में कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने कलाम के समर्थन में मतदान किया और 25 जुलाई 2002 को डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने देश के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली।

अशोक टंडन ने अपनी किताब में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के संबंधों पर भी रोशनी डाली है। उनके मुताबिक, दोनों नेताओं के बीच कुछ नीतिगत मतभेद जरूर थे, लेकिन यह कभी सार्वजनिक टकराव में नहीं बदले। आडवाणी वाजपेयी को हमेशा अपना नेता और प्रेरणा स्रोत मानते थे, जबकि वाजपेयी आडवाणी को अपना ‘अटल साथी’ कहा करते थे। टंडन का कहना है कि वाजपेयी-आडवाणी की जोड़ी भारतीय राजनीति में संतुलन, सहयोग और वैचारिक साझेदारी का प्रतीक रही।

किताब में 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए आतंकी हमले का भी एक संवेदनशील प्रसंग शामिल है। टंडन लिखते हैं कि हमले के समय कांग्रेस अध्यक्ष और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सोनिया गांधी ने फोन पर अटल बिहारी वाजपेयी की कुशलक्षेम पूछी थी। उस वक्त वाजपेयी अपने आवास पर थे और टीवी पर हालात देख रहे थे। वाजपेयी ने सोनिया गांधी को जवाब देते हुए कहा था कि वे सुरक्षित हैं, बल्कि उन्हें यह चिंता थी कि कहीं सोनिया गांधी संसद भवन में तो नहीं हैं। यह संवाद उस दौर की राजनीतिक परिपक्वता और मानवीय संवेदना को भी दर्शाता है।

कुल मिलाकर, ‘अटल संस्मरण’ न सिर्फ अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व और निर्णयों को उजागर करती है, बल्कि 2002 के राष्ट्रपति चुनाव और उस समय की सत्ता राजनीति के कई अनकहे पहलुओं को भी सामने लाती है।

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