जय कॉर्प लिमिटेड से जुड़े कथित ₹2,434 करोड़ के धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने देशभर में एक साथ बड़ी कार्रवाई की है। ED की टीमों ने रायपुर, मुंबई, नासिक और बेंगलुरु समेत 30 से अधिक ठिकानों पर छापेमारी कर दस्तावेजों और डिजिटल रिकॉर्ड की गहन जांच शुरू की है। एजेंसी को संदेह है कि रियल एस्टेट निवेश के नाम पर जुटाई गई भारी-भरकम रकम को विदेशी कंपनियों और ऑफशोर अकाउंट्स के जरिए इधर-उधर किया गया।
इस कार्रवाई के केंद्र में जय कॉर्प लिमिटेड के निदेशक आनंद जयकुमार जैन हैं, जिनका नाम पहले से चल रही CBI जांच में सामने आया था। आनंद जैन मशहूर गेमिंग प्लेटफॉर्म ड्रीम11 के को-फाउंडर हर्ष जैन के पिता हैं, जिसके चलते मामला और भी हाई-प्रोफाइल हो गया है। ED संदिग्ध लेन-देन, शेल कंपनियों और विदेशी संस्थाओं के बीच पैसों की कड़ियों को जोड़ने की कोशिश कर रही है। जांच एजेंसी को आशंका है कि इस नेटवर्क में कई अन्य कंपनियां और बड़े कारोबारी समूह भी शामिल हो सकते हैं।
इस पूरे मामले की जड़ CBI द्वारा दर्ज की गई FIR में है, जो बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देश के बाद दर्ज की गई थी। अदालत के आदेश पर एक विशेष जांच टीम गठित की गई, जिसने मामले की नए सिरे से पड़ताल शुरू की। इससे पहले मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को दिसंबर 2021 और अप्रैल 2023 में इस केस से जुड़ी शिकायतें मिल चुकी थीं, लेकिन हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद जांच को नई रफ्तार मिली।
CBI की FIR के अनुसार, मई 2006 से जून 2008 के बीच आनंद जैन और अन्य आरोपियों ने दो कंपनियों के जरिए मुंबई और अन्य शहरों में रियल एस्टेट डेवलपमेंट के नाम पर निवेशकों से करीब ₹2,434 करोड़ जुटाए। आरोप है कि निवेशकों को परियोजनाओं में पैसा लगाने का भरोसा दिलाया गया, लेकिन रकम का इस्तेमाल तय उद्देश्यों के बजाय अन्य वित्तीय गतिविधियों में किया गया।
जांच में यह भी सामने आया है कि नवी मुंबई SEZ प्राइवेट लिमिटेड के नाम पर बैंकों से ₹3,252 करोड़ का कर्ज लिया गया था। इससे पहले मुंबई SEZ लिमिटेड के लिए भी ₹686 करोड़ का बैंक लोन लिया जा चुका था। एजेंसियों का कहना है कि इन कर्जों का उपयोग घोषित प्रोजेक्ट्स में न होकर दूसरी जगहों पर किया गया, जिससे बैंकिंग सिस्टम और निवेशकों के साथ धोखाधड़ी की आशंका मजबूत होती है।
CBI और ED दोनों का आरोप है कि आपराधिक साजिश के तहत निवेशकों और बैंकों से जुटाई गई रकम को मॉरिशस और जर्सी जैसे टैक्स हेवन माने जाने वाले इलाकों में स्थित विदेशी कॉर्पोरेट कंपनियों में ट्रांसफर किया गया। जांच एजेंसियों को यह भी शक है कि नवंबर 2007 के आसपास इस पैसे का इस्तेमाल रिलायंस पेट्रोकेमिकल्स की फ्यूचर ट्रेडिंग में किया गया, जिससे बाजार में मुनाफा कमाने की कोशिश की गई।
इसके अलावा बैंकों से लिए गए करीब ₹98.83 करोड़ के विदेशी मुद्रा कर्ज को भी मॉरिशस में निवेश किए जाने के संकेत मिले हैं। इससे यह संदेह और गहरा गया है कि पूरा नेटवर्क योजनाबद्ध तरीके से मनी लॉन्ड्रिंग के लिए इस्तेमाल किया गया। फिलहाल ED और CBI मनी ट्रेल, ऑफशोर कंपनियों और निवेश से जुड़े हर लिंक की बारीकी से जांच कर रही हैं।
जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी, वैसे-वैसे नई गिरफ्तारियों, संपत्तियों की कुर्की और बड़े खुलासों की संभावना से इनकार नहीं किया जा रहा। माना जा रहा है कि यह मामला आने वाले समय में देश के सबसे बड़े कॉर्पोरेट और मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में शुमार हो सकता है।