रायपुर से लेकर बस्तर के सुदूर अंचलों तक छत्तीसगढ़ में शासन और विकास की परिभाषा तेजी से बदल रही है। विष्णुदेव साय के नेतृत्व में भाजपा सरकार द्वारा शुरू की गई ‘नियद नेल्ला नार’ योजना ने उन इलाकों में भी भरोसे और उम्मीद की नींव रख दी है, जिन्हें कभी नक्सल प्रभाव और प्रशासनिक अनुपस्थिति का प्रतीक माना जाता था। गोंडी और हलबी बोली में ‘आपका अच्छा गाँव’ का भाव समेटे यह योजना आज बस्तर के इतिहास में सबसे बड़े प्रशासनिक और विकासात्मक हस्तक्षेप के रूप में देखी जा रही है।
सुरक्षा और विकास को एक साथ जोड़ने वाले इस मॉडल के तहत योजना का दायरा 5 किलोमीटर से बढ़ाकर 10 किलोमीटर तक किया गया है। नतीजा यह हुआ कि अब 69 फॉरवर्ड कैंपों के माध्यम से 397 गांवों तक शासन की सीधी पहुंच बन चुकी है। यह केवल संख्या का विस्तार नहीं है, बल्कि उन गांवों में प्रशासन की उपस्थिति है, जहां पहले सरकारी योजनाएं नाम मात्र की भी नहीं पहुंच पाती थीं। आज इन कैंपों और मोबाइल टीमों के जरिए स्वास्थ्य, शिक्षा, राशन, आंगनबाड़ी, पेंशन, आयुष्मान कार्ड, उज्ज्वला, प्रधानमंत्री आवास और रोजगार जैसी सुविधाएं लोगों के दरवाजे तक पहुंच रही हैं।
नियद नेल्ला नार के प्रभाव का एक बड़ा पहलू डिजिटल कनेक्टिविटी है। योजना के तहत 700 से अधिक मोबाइल टावर लगाए या अपग्रेड किए गए हैं, जिनमें बड़ी संख्या में 4G टावर शामिल हैं। कुंडापल्ली और अबूझमाड़ जैसे इलाकों में आज़ादी के बाद पहली बार मोबाइल नेटवर्क पहुंचा है। इससे न सिर्फ संचार आसान हुआ, बल्कि बैंकिंग, ऑनलाइन सेवाओं, टेलीमेडिसिन और शिक्षा से जुड़ने के रास्ते भी खुले हैं। डिजिटल पहुंच ने ग्रामीणों को पहली बार यह एहसास दिलाया है कि वे भी मुख्यधारा से जुड़े हुए हैं।
सड़क, बिजली और परिवहन के क्षेत्र में भी इस योजना ने ऐतिहासिक बदलाव लाए हैं। कई गांवों में पहली बार घर-घर बिजली पहुंची है, जिससे जीवन स्तर के साथ सुरक्षा की भावना भी मजबूत हुई है। अबूझमाड़ जैसे दुर्गम क्षेत्रों में बस सेवाएं शुरू होने से गांवों का संपर्क बाहरी दुनिया से जुड़ा है। बारहमासी सड़कों और पुल-पुलियों के निर्माण ने सालभर आवाजाही को संभव बनाया है। लंबे समय से बंद पड़े हाट-बाजार फिर से सक्रिय होने लगे हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था और रोजगार के अवसरों को नई गति मिली है।
इन भौतिक बदलावों के साथ-साथ सबसे बड़ा परिवर्तन सामाजिक स्तर पर दिखाई दे रहा है। जिन इलाकों में कभी सरकारी शिविरों का विरोध होता था, वहां आज लोग स्वयं आगे आकर योजनाओं से जुड़ रहे हैं। प्रशासन और जनता के बीच संवाद बढ़ा है, डर और दूरी कम हुई है और कई क्षेत्रों में नक्सल प्रभाव कमजोर पड़ा है। आत्मसमर्पण की घटनाओं में वृद्धि और शासन के प्रति बढ़ता विश्वास इस बात का संकेत है कि संवेदनशील प्रशासन और विकास मिलकर स्थायी शांति की दिशा में कारगर साबित हो सकते हैं।
योजना के विस्तार के साथ माओवादी प्रभावित क्षेत्रों में 17 विभागों की 59 हितग्राही योजनाएं और 28 सामुदायिक सुविधाएं एक साथ लागू की जा रही हैं। इसके अलावा, इन जिलों के विद्यार्थियों के लिए तकनीकी और प्रोफेशनल शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु ब्याजमुक्त ऋण का निर्णय युवाओं के भविष्य के लिए अहम माना जा रहा है। इससे शिक्षा और रोजगार के नए रास्ते खुलने की उम्मीद जगी है।
कलेपाल, कोलेंग, बोदली और पूवर्ती जैसे गांव इस बदलाव के जीवंत उदाहरण हैं, जहां सड़क, बिजली, राशन दुकान, मोबाइल टावर और बाजार जैसी बुनियादी सुविधाओं ने गांवों की तस्वीर बदल दी है। पूवर्ती, जिसे कभी नक्सलियों का गढ़ माना जाता था, आज सरकारी सेवाओं से जुड़कर विकास की राह पर आगे बढ़ रहा है। बीजापुर जिले के तर्रेम क्षेत्र के हुंगी गांव में पहला प्रधानमंत्री आवास मिलना केवल एक परिवार के लिए नहीं, बल्कि पूरे गांव के लिए विश्वास और आशा का प्रतीक बन गया है।
नियद नेल्ला नार योजना ने यह साबित कर दिया है कि यदि नीति मानवीय हो, क्रियान्वयन मजबूत हो और नीयत स्पष्ट हो, तो सबसे कठिन और उपेक्षित क्षेत्रों में भी बदलाव संभव है। 69 फॉरवर्ड कैंपों के जरिए 397 गांवों को जोड़ने वाला यह मॉडल अब सिर्फ एक सरकारी योजना नहीं, बल्कि देश के लिए मानव-केंद्रित ग्रामीण प्रशासन का एक प्रभावी उदाहरण बन चुका है, जो यह दिखाता है कि भरोसे और विकास के साथ स्थायी परिवर्तन की नींव रखी जा सकती है।