ग्रामीण भारत में रोजगार और आजीविका की तस्वीर बदलने वाला नया कानून ‘विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (VB-G RAM G)’ राज्यों के लिए बड़ी आर्थिक राहत लेकर आने वाला है। ताज़ा आकलन के मुताबिक, इस योजना से देश के राज्यों को सामूहिक रूप से करीब 17,000 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ होने की संभावना है। यह दावा State Bank of India की लेटेस्ट रिसर्च रिपोर्ट में किया गया है, जिसने केंद्र-राज्य फंडिंग मॉडल को लेकर चल रही तमाम आशंकाओं पर विराम लगा दिया है।
नए कानून के तहत ग्रामीण परिवारों को अब साल में 125 दिन रोजगार की गारंटी मिलेगी, जो पहले 100 दिन तक सीमित थी। इसका सीधा असर गांवों में रहने वाले गरीब और मजदूर परिवारों की आय और आर्थिक सुरक्षा पर पड़ेगा। ज्यादा दिनों का काम मतलब ज्यादा मजदूरी, ज्यादा नकदी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तेज़ी से पैसा घूमना। सरकार का मानना है कि इससे सिर्फ रोजगार ही नहीं बढ़ेगा, बल्कि पलायन पर भी लगाम लगेगी।
इस योजना का खर्च केंद्र और राज्य मिलकर उठाएंगे। सामान्य राज्यों के लिए फंडिंग का अनुपात 60:40 तय किया गया है, यानी 60 प्रतिशत केंद्र और 40 प्रतिशत राज्य सरकारें देंगी। वहीं पूर्वोत्तर राज्यों, हिमालयी राज्यों और कुछ केंद्र शासित प्रदेशों में केंद्र सरकार 90 प्रतिशत तक खर्च वहन करेगी। खेती के व्यस्त समय को ध्यान में रखते हुए राज्यों को यह अधिकार भी दिया गया है कि वे बुवाई और कटाई के दौरान साल में अधिकतम 60 दिनों तक काम की संख्या को नियंत्रित कर सकें।
इस फंडिंग स्ट्रक्चर को लेकर विपक्ष और कुछ विशेषज्ञों ने आशंका जताई थी कि इससे राज्यों पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा, लेकिन SBI की रिपोर्ट इस दावे को पूरी तरह खारिज करती है। रिपोर्ट के अनुसार, आंकड़े साफ दिखाते हैं कि नए ढांचे में राज्यों को नुकसान नहीं, बल्कि सीधा फायदा होगा। पिछले सात सालों के मनरेगा आवंटन की तुलना में नया सिस्टम ज्यादा संतुलित और न्यायसंगत है।
विश्लेषण में यह भी सामने आया है कि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र इस योजना के सबसे बड़े लाभार्थी हो सकते हैं। इनके अलावा बिहार, छत्तीसगढ़ और गुजरात जैसे राज्यों को भी अच्छा खासा फायदा मिलने की संभावना है। तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों में शुरुआती तौर पर हल्की कमी दिखती है, लेकिन असाधारण वर्षों के आंकड़े हटाने के बाद वहां भी स्थिति लगभग संतुलित नजर आती है।
रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि 60:40 के रेश्यो से राज्यों को अतिरिक्त कर्ज लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह डर राज्यों की वित्तीय क्षमता को कम आंकने से पैदा हुआ है। नए सिस्टम में फंड का वितरण समानता और कार्यकुशलता के आधार पर किया जाएगा, ताकि विकसित और पिछड़े, दोनों तरह के राज्यों को उनकी जरूरत के मुताबिक संसाधन मिल सकें।
SBI का मानना है कि अगर राज्य सरकारें अपनी 40 प्रतिशत हिस्सेदारी को समझदारी से इस्तेमाल करती हैं, तो इस मिशन के नतीजे कहीं ज्यादा प्रभावशाली हो सकते हैं। इससे न सिर्फ ग्रामीण रोजगार बढ़ेगा, बल्कि सड़क, तालाब, सिंचाई और अन्य बुनियादी ढांचों का विकास भी तेज़ी से होगा। कुल मिलाकर ‘जी राम जी’ सिर्फ एक रोजगार योजना नहीं, बल्कि राज्यों की आर्थिक सेहत सुधारने वाला बड़ा इंजन बन सकता है।