खरीदी केंद्रों में धान का जाम: उठाव नहीं होने से किसान बेहाल, समितियों पर बढ़ता दबाव

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Raipur। छत्तीसगढ़ में समर्थन मूल्य पर धान खरीदी अब गंभीर अव्यवस्था की ओर बढ़ती दिख रही है। राज्य के सहकारी खरीदी केंद्रों में धान का उठाव समय पर नहीं होने से हालात ऐसे बन गए हैं कि किसान परेशान हैं और समिति प्रभारियों की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। प्रदेश में बनाए गए 2739 खरीदी केंद्रों में से करीब 1600 केंद्रों पर बफर लिमिट से ज्यादा धान जमा हो चुका है। कई जगहों पर खरीदी केंद्र पूरी तरह भर गए हैं, जिससे नए धान की आवक रोकने जैसी स्थिति बन रही है।

15 नवंबर से शुरू हुई धान खरीदी में अब तक 40 दिनों के भीतर 11.51 लाख किसानों से 60 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा धान खरीदा जा चुका है। इस साल धान बेचने के लिए 27 लाख से अधिक किसानों ने पंजीयन कराया है। आंकड़े बताते हैं कि धान खरीदी तेज रफ्तार से चल रही है, लेकिन उसके मुकाबले उठाव बेहद सुस्त है। उठाव के लिए 15 लाख मीट्रिक टन का डीओ और टीओ जारी किया गया था, जिसमें से मिलर्स और ट्रांसपोर्टर्स ने करीब 11 लाख मीट्रिक टन धान ही उठाया है। शेष लाखों मीट्रिक टन धान अभी भी खरीदी केंद्रों में खुले में पड़ा हुआ है।

स्थिति यह है कि आधे से ज्यादा खरीदी केंद्रों में बफर लिमिट पार हो चुकी है। धान रखने की जगह नहीं बची है और कई केंद्रों में धान सूखने लगा है। इसके बावजूद Markfed और खाद्य विभाग की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नजर नहीं आ रही है। अब तक न तो मिलर्स पर सख्ती हुई है और न ही ट्रांसपोर्टर्स के खिलाफ कोई प्रभावी कदम उठाया गया है, जिससे नाराजगी और असंतोष बढ़ रहा है।

जिलों की स्थिति और भी चिंताजनक है। कवर्धा जिले के 108 में से 80 खरीदी केंद्र बफर लिमिट पार कर चुके हैं। गरियाबंद में 90 में से 85 केंद्रों पर धान का अंबार लगा है। महासमुंद के 182 में से 130, बेमेतरा के 129 में से 103 और बलौदाबाजार के 166 में से 111 खरीदी केंद्रों में भी यही हाल है। बालोद, राजनांदगांव, धमतरी, दुर्ग और रायपुर जैसे जिलों में भी धान का बंपर स्टॉक जमा हो गया है। अगर उठाव में जल्द तेजी नहीं आई, तो कई जिलों में खरीदी बंद करने जैसी नौबत आ सकती है।

धान खरीदी की रफ्तार फिलहाल थमी नहीं है। रोजाना दो से तीन लाख टन धान की आवक हो रही है और टोकन के आधार पर किसान लगातार केंद्रों तक पहुंच रहे हैं। लेकिन डीएमओ स्तर पर परिवहन आदेश समय पर जारी नहीं होने से धान खुले में पड़ा है। तेज धूप के कारण नमी कम हो रही है, जिससे समितियों को सूखत से नुकसान का डर सता रहा है। नुकसान की जिम्मेदारी किसकी होगी, इसको लेकर भी असमंजस बना हुआ है।

इस साल सरकार ने खरीदी केंद्रों की बफर लिमिट बढ़ाई थी, ताकि व्यवस्था सुचारु रहे, लेकिन हालात उलटे नजर आ रहे हैं। बफर लिमिट बढ़ने के बावजूद उठाव की तैयारी कमजोर साबित हो रही है। मिलर्स का कहना है कि उनकी उठाव सीमा पहले से तय है और पिछले साल की मिलिंग पूरी न होने के कारण कई मिलर्स अपनी लिमिट पार कर चुके हैं। वहीं संग्रहण केंद्रों में पर्याप्त तैयारी न होने से भी परिवहन प्रभावित हो रहा है।

कुल मिलाकर, धान खरीदी की यह अव्यवस्था किसानों के लिए नई चिंता बन गई है। अगर जल्द ही उठाव व्यवस्था दुरुस्त नहीं हुई, तो इसका सीधा असर खरीदी प्रक्रिया, किसानों की आय और सहकारी समितियों की स्थिति पर पड़ेगा।

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