भारत के घरों में GDP से भी ज़्यादा सोना: ₹5 ट्रिलियन डॉलर की छुपी दौलत, जो देश की तस्वीर बदल सकती है

Spread the love

नई दिल्ली। सोने की कीमतों में आई ऐतिहासिक तेजी ने भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर एक ऐसी तस्वीर पेश की है, जिसने पूरी दुनिया का ध्यान खींच लिया है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना 4,500 डॉलर प्रति औंस के पार पहुंचते ही भारत के घरों में जमा सोने की कुल कीमत 5 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा आंकी जा रही है। यह आंकड़ा अपने आप में चौंकाने वाला है, क्योंकि यह भारत की मौजूदा जीडीपी, जो करीब 4.1 ट्रिलियन डॉलर के आसपास है, उससे भी बड़ा बैठता है। यह तुलना सिर्फ नंबरों की नहीं, बल्कि उस मानसिकता और परंपरा की कहानी कहती है, जिसमें सोना भारतीय जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है।

अनुमानों के मुताबिक भारतीय परिवारों के पास करीब 34,600 टन सोना मौजूद है। मौजूदा ऊंची कीमतों पर देखें तो यह दुनिया की सबसे बड़ी निजी गोल्ड होल्डिंग बन जाती है। भारत में सोना केवल एक कीमती धातु नहीं, बल्कि भरोसे, परंपरा और सामाजिक सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। शादी-ब्याह से लेकर त्योहारों तक और संकट के समय से लेकर पीढ़ी दर पीढ़ी संपत्ति सहेजने तक, सोना हमेशा सबसे भरोसेमंद सहारा रहा है।

यही वजह है कि जब भारत तेजी से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है, तब भी सोने के प्रति लोगों का विश्वास कम नहीं हुआ। हालांकि अर्थशास्त्री इस तुलना को सतर्क नजर से देखते हैं। जीडीपी एक साल में पैदा होने वाली आय और उत्पादन को दर्शाती है, जबकि सोना वर्षों में जमा की गई संपत्ति है। फिर भी यह अंतर इस बात को उजागर करता है कि भारतीय परिवारों की कुल संपत्ति में सोने की भूमिका कितनी विशाल है। कुछ विशेषज्ञ इसे ‘वेल्थ इफेक्ट’ मानते हैं, यानी कीमत बढ़ने से संपन्नता का अहसास, जो खर्च और निवेश को मनोवैज्ञानिक सहारा दे सकता है।

लेकिन जमीनी हकीकत इससे थोड़ी अलग है। इतिहास बताता है कि सोने की कीमतें बढ़ने के बावजूद भारत में उपभोग में कोई बड़ा उछाल नहीं आया। इसकी वजह भारतीय व्यवहार में छिपी है। ज्यादातर घरों में सोना गहनों के रूप में रखा जाता है और इसे रोजमर्रा की निवेश संपत्ति की तरह नहीं देखा जाता। शेयर या म्यूचुअल फंड की तरह लोग इसकी कीमतों पर रोज नजर नहीं रखते। कीमत बढ़ने पर भी लोग इसे बेचकर खर्च करने के बजाय भविष्य की सुरक्षा के तौर पर संभाल कर रखना ज्यादा बेहतर समझते हैं।

भारत आज दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सोना उपभोक्ता है और वैश्विक मांग का बड़ा हिस्सा यहीं से आता है। हाल के वर्षों में गहनों के साथ-साथ सिक्कों और बार के रूप में निवेश की मांग भी तेजी से बढ़ी है। इतना ही नहीं, Reserve Bank of India ने भी अपने भंडार में लगातार सोना बढ़ाया है, जो इस बात का संकेत है कि सोने को सिर्फ आम लोग ही नहीं, बल्कि वित्तीय संस्थाएं भी सबसे सुरक्षित संपत्ति मानती हैं।

इसके बावजूद नीति निर्माताओं के लिए यह स्थिति एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। आर्थिक नजरिए से सोना एक निष्क्रिय संपत्ति है, जो न तो उत्पादन बढ़ाता है और न ही सीधे रोजगार पैदा करता है। सरकारें लंबे समय से चाहती रही हैं कि लोग फिजिकल गोल्ड की बजाय गोल्ड बॉन्ड, ईटीएफ और डिजिटल विकल्पों की ओर बढ़ें, ताकि इस विशाल पूंजी को अर्थव्यवस्था के विकास में लगाया जा सके। लेकिन लोगों का भरोसा आज भी ठोस सोने पर ही टिका हुआ है।

कुल मिलाकर, भारत के घरों में जमा 5 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का सोना देश की छुपी हुई ताकत भी है और एक बड़ा विरोधाभास भी। यह सुरक्षा, स्थिरता और आत्मविश्वास का प्रतीक है, लेकिन साथ ही यह सवाल भी खड़ा करता है कि इतनी विशाल दौलत को कैसे उत्पादक निवेश में बदला जाए, ताकि यह सिर्फ तिजोरियों में बंद न रहे, बल्कि देश की आर्थिक रफ्तार को भी नई गति दे सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *