मुंबई में साइबर ठगी का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां 68 वर्षीय बुजुर्ग महिला को करीब दो महीने तक डर और धोखे में रखकर 3.71 करोड़ रुपये की ठगी कर ली गई। ठगों ने खुद को कोलाबा पुलिस स्टेशन और केंद्रीय एजेंसियों का अधिकारी बताया, इतना ही नहीं—ऑनलाइन “कोर्ट सुनवाई” रचकर एक शख्स ने खुद को पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी. वाई. चंद्रचूड़ तक बता डाला। मामले में साइबर पुलिस ने गुजरात के सूरत से एक आरोपी को गिरफ्तार किया है, जिसके खाते में 1.71 करोड़ रुपये ट्रांसफर हुए थे।
पीड़िता अंधेरी वेस्ट की रहने वाली हैं। 18 अगस्त को आए एक कॉल से शुरू हुआ यह जाल महीनों तक कसता चला गया। कॉल करने वाले ने खुद को कोलाबा पुलिस का अधिकारी बताते हुए कहा कि महिला का बैंक खाता मनी लॉन्ड्रिंग में इस्तेमाल हो रहा है। धमकी दी गई कि किसी को बताया तो कार्रवाई होगी। डर के माहौल में महिला से बैंक डिटेल्स ली गईं और फिर जांच का हवाला देकर Central Bureau of Investigation का नाम जोड़ा गया।
ठगों ने मनोवैज्ञानिक दबाव को और बढ़ाया—महिला से उसके जीवन पर दो-तीन पेज का निबंध लिखवाया गया और भरोसा दिलाया गया कि “बेगुनाही” साबित हो गई है, जमानत दिलवा दी जाएगी। इसके बाद एक आरोपी, जिसने खुद को एस. के. जायसवाल बताया, वीडियो कॉल पर महिला को एक ऐसे व्यक्ति से मिलवाता है जो खुद को सुप्रीम कोर्ट का जस्टिस चंद्रचूड़ बताता है। निवेश से जुड़े दस्तावेज मांगे जाते हैं और अलग-अलग खातों में रकम ट्रांसफर करवाई जाती है। दो महीने में करीब पौने चार करोड़ रुपये निकल जाते हैं—और जब कॉल्स अचानक बंद हो जाती हैं, तब जाकर ठगी का अहसास होता है।
महिला ने वेस्ट रीजन साइबर पुलिस से संपर्क किया। जांच में पता चला कि रकम कई “म्यूल अकाउंट्स” में घूमाई गई थी। इन्हीं में से एक खाता सूरत का निकला, जो एक फर्जी कपड़ा कंपनी के नाम पर खुलवाया गया था। गिरफ्तार आरोपी ने कबूल किया कि उसे इस खाते के बदले 6.40 लाख रुपये कमीशन मिला। पूछताछ में उसने रैकेट के दो मास्टरमाइंड के नाम बताए, जो फिलहाल विदेश में हैं—इनमें से एक इमिग्रेशन और वीजा सर्विस का कारोबार चलाता है।
जांच एजेंसियों के लिए यह केस इसलिए भी अहम है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही डिजिटल अरेस्ट मामलों पर सख्ती दिखा चुका है। 1 दिसंबर को कोर्ट ने ऐसे मामलों में देशभर में समन्वित जांच के निर्देश दिए थे और राज्यों से Delhi Special Police Establishment Act के तहत जांच की अनुमति देने को कहा था।
संक्षेप में, यह मामला दिखाता है कि साइबर ठग अब सिर्फ कॉल या मैसेज तक सीमित नहीं रहे—वे नकली कोर्ट, फर्जी जज और “डिजिटल अरेस्ट” जैसे हथकंडों से डर का पूरा थिएटर रच रहे हैं। सतर्कता ही बचाव है: कोई भी एजेंसी फोन/वीडियो कॉल पर पैसे, दस्तावेज या “गोपनीय” निर्देश नहीं मांगती—ऐसा दावा होते ही तुरंत पुलिस और साइबर सेल से संपर्क करें।