वोडाफोन-आइडिया को कैबिनेट से बड़ी राहत: ₹87,695 करोड़ के AGR बकाया पर फ्रीज, FY32 से FY41 के बीच होगा भुगतान

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कर्ज के भारी दबाव से जूझ रही टेलीकॉम कंपनी Vodafone Idea के लिए साल के आखिरी दिन बड़ी राहत लेकर आए। बुधवार 31 दिसंबर को केंद्रीय कैबिनेट ने कंपनी के ₹87,695 करोड़ के एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू यानी AGR बकाया भुगतान पर फिलहाल रोक लगाने का फैसला किया। इस निर्णय के बाद कंपनी को यह रकम तुरंत चुकाने की जरूरत नहीं होगी और भुगतान अब वित्त वर्ष 2032 से 2041 के बीच दस साल की अवधि में किया जाएगा।

कैबिनेट के इस फैसले के तहत वोडाफोन-आइडिया को पांच साल का मोरेटोरियम भी दिया गया है। इसका सीधा मतलब है कि आने वाले कुछ वर्षों तक कंपनी को AGR बकाए से जुड़ी बड़ी किस्तों का बोझ नहीं उठाना पड़ेगा। नकदी संकट से जूझ रही कंपनी के लिए यह राहत जीवनरेखा मानी जा रही है। अगर यह फैसला नहीं आता, तो कंपनी के लिए अपने ऑपरेशन्स को जारी रखना बेहद मुश्किल हो सकता था।

यह निर्णय Supreme Court of India के हालिया रुख के बाद संभव हो सका, जिसमें सरकार को AGR बकाए के कैलकुलेशन पर दोबारा विचार करने की अनुमति दी गई थी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सख्त रुख अपनाया था, लेकिन बाद में सरकार ने यह दलील दी कि टेलीकॉम सेक्टर में प्रतिस्पर्धा बनाए रखने और करोड़ों ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए वोडाफोन-आइडिया का अस्तित्व जरूरी है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार खुद कंपनी की सबसे बड़ी शेयरहोल्डर है।

वर्तमान में केंद्र सरकार की वोडाफोन-आइडिया में करीब 49 प्रतिशत हिस्सेदारी है। बीते वर्षों में कंपनी ने स्पेक्ट्रम और ब्याज बकाए को इक्विटी में बदला था, जिससे सरकार की हिस्सेदारी बढ़ गई। इसके बावजूद कंपनी पर कुल कर्ज दो लाख करोड़ रुपये से अधिक का है, जिसमें AGR और स्पेक्ट्रम बकाया सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।

इस राहत के बाद कंपनी का फोकस अब नेटवर्क सुधार और निवेश जुटाने पर रहने की उम्मीद है। कंपनी प्रबंधन पहले ही संकेत दे चुका है कि बकाया भुगतान को लेकर स्पष्टता मिलने के बाद बैंक और निवेशकों से फंड जुटाने की प्रक्रिया तेज की जाएगी। इस पूंजी का इस्तेमाल मुख्य रूप से 5G नेटवर्क लॉन्च करने और मौजूदा 4G इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने में किया जाएगा। टेलीकॉम विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले से बाजार में केवल दो बड़ी कंपनियों के वर्चस्व यानी डूओपोली बनने का खतरा फिलहाल टल गया है और प्रतिस्पर्धा बनी रहेगी।

कुल मिलाकर, कैबिनेट का यह निर्णय न सिर्फ वोडाफोन-आइडिया के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि पूरे टेलीकॉम सेक्टर के संतुलन और उपभोक्ताओं के हितों के लिहाज से भी अहम माना जा रहा है।

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