छत्तीसगढ़ का बस्तर का इलाका ईसाई मतांतरण का केंद्र बन चुका था लेकिन अब बदले हुए हालात में बस्तर जिले के 10 परिवार के 60 सदस्य फिर से अपने मूल सनातन धर्म में लौट आए हैं। इन परिवारों ने करीब 5 साल पहले ईसाई धर्म अपना लिया था। अब आदिवासी रीति-रिवाज के अनुसार इनकी वापसी करवाई गई है। गांव के पुजारी, पटेल, मांझी-चालकी समेत विश्व हिंदू परिषद, बजरंगदल और बस्तर संस्कृति सुरक्षामंच के सदस्यों की मौजूदगी में इन 60 सदस्यों ने मूल धर्म अपनाया है।
राष्ट्रबोध को मिली जानकारी के अनुसार बस्तर जिले के लोहंडीगुड़ा ब्लॉक के कस्तूरपाल गांव के 3 अलग-अलग मोहल्ले में रहने वाले 10 परिवार ने 5 साल पहले अपने धर्म को छोड़ दिया था। मिशनरियों के झांसे में आकर ईसाई पंथ को अपना लिया था। जिससे गांव में होने वाले रीति-रिवाज, परंपरा समेत अन्य शुभ कार्यों में भी ये लोग शामिल नहीं होते थे। ऐसे में एक ही गांव के लोग आपस में दो फाड़ में बंट गए थे।
हिंदूवादी संगठनों ने दिखाया प्रभाव
जिसके बाद बस्तर संस्कृति सुरक्षामंच, विश्व हिंदू परिषद, बजरंगदल के सदस्यों ने इन्हें मूल धर्म में लाने की कोशिश की। जिसके बाद इन परिवार के सदस्यों ने आपसी सहमति से मूल धर्म में लौटने और अपनी पुरानी संस्कृति और परंपरा को अपनाने का मन बना लिया। जिसके बाद 31 जनवरी को गांव में ही पुजारी, मांझी-चालकी समेत गांव के प्रमुखों के बीच इनकी मूल धर्म में वापसी करवाई गई।
अब इस परिवार के सदस्यों का कहना है कि, बहकावे में आकर अपने धर्म को छोड़े थे। अब मूल धर्म में आने के बाद आदिवासी संस्कृति-परंपरा को मानेंगे। कभी भी अपने धर्म को नहीं छोड़ेंगे।
धर्म से अलग करने के लिए ऐसी हुई चालबाजी
बस्तर संस्कृति सुरक्षा मंच और विश्व हिंदू परिषद के सदस्य कमलेश विश्वकर्मा ने कहा कि, इससे पहले भी कई परिवारों की मूल धर्म में वापसी करवाई जा चुकी है। कुछ लोगों के बहकावे में आकर इन्होंने अपना धर्म छोड़कर ईसाई धर्म अपना लिया था। लेकिन अब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ है अपने मूल धर्म सनातन में एक बार फिर से वह खुशी-खुशी जुड़ गए हैं ।