दोनों तरफ 40-40 फीट गहरी खाई और बीच में मात्र 9 फीट का संकरा रास्ता। यानी जिंदगी और मौत के बीच महज एक फीट का फासला (सात फीट बस की चौड़ाई के बाद दोनों तरफ सिर्फ एक-एक फीट ही सड़क बचता है)। इसी रास्ते से होकर कुम्हारी स्थित केडिया डिस्टलरी की बस रोज सुबह-शाम 35 मजदूरों को लेकर आती-जाती थी।
पर मंगलवार की रात नियति ने कुछ और तय कर रखा था। बस का संतुलन जरा सा गड़बड़ाया और एक साथ 12 जिंदगियां छीन ली। दैनिक भास्कर ने जायजा लिया तो पता चला कि जिले में ऐसी कई दर्जन खदानें हैं, जहां मौत के रास्ते से रोज हजारों जिंदगियां गुजर रही हैं। कुम्हारी- खपरी में लगभग 100 एकड़ में अलग-अलग खदानें हैं। यहां संकरे रास्ते से राेज खपरी, पंचदेवरी, सांकरा, अकोला, बोरसी, कपसदा, मलपुरी, गुधेली, भिंभौरी ओटेबंद के ग्रामीण गुजरते हैं।
नियम: एनएच पर 100, बाकी रास्तों पर 50 मीटर दूर खनन
अब सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर 12 मौतों का गुनाहगार कौन है? मौत की ऐसी खदानें खोद रहे थे तब जिम्मेदार कहां थे? खोदते समय कार्रवाई क्यों नहीं की गई? लगभग सभी खदानें तय मापदंडों से अधिक खोदी गई हैं। वैध हैं तो लीज के दायरे से बाहर जाकर खुदाई की गई है। जबकि नेशनल हाईवे से 100 और स्टेट हाईवे एवं अन्य सड़कों से कम से कम 50 मीटर दूर ही खनन किया जा सकता है।
तीस साल बाद अब फाइल खंगाल रहा खनिज विभाग
जिला प्रशासन और खनिज विभाग कार्रवाई के नाम पर कुछ करने की स्थिति में नहीं है। इस संबंध में अधिकारियों का कहना है कि नब्बे के दशक में जब खदान की अनुज्ञा दी गई थी, तब बैक फिलिंग या माइनिंग प्लान जैसा कोई प्रावधान नहीं था। इसका एक्ट अप्रैल 2018 में आया। फिर भी फाइल खंगाल रहे हैं। किस-किस को और कब-कब खनन की अनुमति दी गई थी।