चुनाव अयोग ने मतदाताओं व मतदान अधिकारियों को कई अधिकार दिए हैं। जैसे यदि किसी बूथ पर वोटर अमर्यादित व्यवहार कर रहे हों तो पीठासीन अधिकारी उन्हें वोट डलवाए बिना वापस भेज सकता है। वोटरों को मतदान से संबंधित कई अधिकार हैं। विधानसभा चुनाव कई फार्म उपयोग में लाए जाते हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है फार्म 17-सी। इसी फार्म में मतपत्रों का पूरा लेखाजोखा रहता है। मतदान के बाद इसे भरा जाता है। इसी से पता चलता है कि किस बूथ पर कितने वोटरों ने मतदान किया है। मतदान के बाद सभी बूथों के पीठासीन अधिकारी इस फार्म को भरकर पोलिंग एजेंटों को देते हैं।
काउंटिंग के लिए ये ही फार्म भेजे जाते हैं। इसमें बूथों पर उपयोग में लाई ईवीएम का नंबर भी होता है। ईवीएम को सील करने वाले स्ट्रिप सील का नंबर भी इस फार्म में लिखा जाता है। इसी से काउंटिंग के दिन यह चेक हो जाता है कि किसी बूथ पर भेजी गई ईवीएम गिनती के लिए वापस लाई गई हैं या नहीं। अब टेस्ट वोट के बारे में जानें, यदि कोई मतदाता पीठासीन अधिकारी से यह शिकायत करता है कि उसने वोट किसी को दिया और पर्ची किसी और उम्मीदवार या सिंबल की निकली है, तो शिकायतकर्ता से एक घोषणा पत्र भरवाया जाएगा। इसमें वोटर यह दावा करेगा कि उसने बटन किसी का दबाया और वोट किसी और के नाम पड़ा है।
वह घोषणापत्र में यह चैलेंज करेगा। इसके बाद उसे फिर से मतदान का मौका मिलेगा, लेकिन इस बार वोटर के साथ पीठासीन अधिकारी, पोलिंग एजेंट व मतदाता स्वयं एक साथ मतदान करने जाएंगे। मतदाता इन सबके सामने बटन दबाएगा। तब अधिकारी यह चैक करेंगे कि जैसा मतदाता शिकायत कर रहा था वैसा ही हुआ? या उसने जिसे मत डाला मत उसी को पड़ा? मान लो उसने ए को वोट दिया और वोट बी को पड़ा, तो उस पूरे बूथ का चुनाव रद्द कर दिया जाएगा। यह माना जाएगा कि अब तक इस बूथ पर जितने वोट पड़े उसमें मशीन ने ठीक से काम नहीं किया। इसका उल्लेख भी फार्म 17-सी में किया जाता है। यदि किसी बूथ पर 667 मत पड़े हैं। तब टेस्ट वोट को कम करके इसे 666 वोट ही गिना जाता है। अब तक ईवीएम को लेकर टेस्ट वोट का कोई भी मामला अब तक सामने नहीं आया है। भारत की ईवीएम को परफैक्ट माना गया है।
टेंडर वोट की गिनती नहीं, पर हो सकता है चुनाव रद्द
- किसी वोटर का वोट पहले ही कोई डाल चुका है। तब वोटर से टेंडर वोट जो मैनुअली होता है, डलवाकर उसे मतदान का अवसर दिया जाता है। इसका उल्लेख फार्म 17- बी में किया जाता है। यह सील लिफाफे में ही रखा जाता है। टेंडर वोट एक ऐसा वोट है जिसकी गिनती नहीं की जाती है। केवल मतदाता को मानसिक तसल्ली देने के लिए डलवाया जाता है। इसमें रजिस्टर 17- ए का उपयोग किया जाता है। इसे प्रारूप 17 ए भी कहते हैं। इसमें मतदाता का हस्ताक्षर करवाया जाता है।
- उदाहरण के लिए यदि किसी विधानसभा में 150 बूथ हैं। इनमें अलग-अलग बूथों पर 100 टेंडर वोट डाले गए। अगर उम्मीदवार के जीत का अंतर उससे कम यानी 50-60 हो, तो पराजित प्रत्याशी हाईकोर्ट में रिट लगा सकता है कि चुनाव के दौरान फर्जी वोटों की वजह से उसकी हार हुई है, क्योंकि 100 टेंडर वोट डाले गए हैं।
- वह कोर्ट से वास्तविक वोटों की गिनती की मांग कर सकता है। तब कोर्ट के आदेश पर टेंडर वोटों की गिनती की जाएगी।ऐसा भारत के चुनाव इतिहास में हो चुका है।
वोट देने से इनका करना
अगर कोई वोटर बूथ पर मतदान की प्रक्रिया पूरी करने व उंगली पर अमिट स्याही लगवाने के बाद कहता है कि वह वोट नहीं देना चाहता। इस बीच यदि मतदान अधिकारी कंट्रोल यूनिट का बटन दबा चुका हो, तो पीठासीन अधिकारी रजिस्टर 17 – ए का उपयोग करता है। इसमें यह दर्ज किया जाता है कि मतदाता ने वोट देने से इनकार किया है। तब उपरोक्त मतदाता की जगह उसके बाद वाले वोटर को ईवीएम का बैलेट यूनिट बटन दबाकर वोटिंग का मौका दिया जाता है।