विधायक देवन्द्र यादव ने दी गलत आय स्रोत की जानकारी; CA पियूष ने कहा-पत्नी को दिया कर्ज़…!

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भिलाई नगर विधानसभा के कांग्रेस विधायक और प्रत्याशी देवेंद्र यादव पर सीए पीयूष जैन ने चुनाव आयोग को संपत्ति की गलत जानकारी देने का आरोप लगाया है। सीए का दावा है कि उन्होंने जो आय का स्रोत बताया है, वो गलत है। इससे पहले देवेंद्र ने पीयूष को मानहानि का नोटिस भी जारी किया था।

सीए पीयूष जैन ने अपने अधिवक्ता अशोक शर्मा के साथ बताया कि महज पांच साल में देवेंद्र यादव और उनकी पत्नी की संपत्ति कई करोड़ बढ़ गए। साल 2018 में देवेंद्र यादव ने अपनी चल संपत्ति 30 लाख 94 हजार 487 बताई थी। वहीं अपनी पत्नी श्रुतिका ताम्रकार की संपत्ति 20 लाख 76 हजार 101 बताई।

दोनों की कुल चल संपत्ति 51 लाख 70 हजार 588 बताई गई। वहीं देवेंद्र की अचल संपत्ति 34 लाख 77 हजार 700 और पत्नी की आय शून्य दिखाई गई है।

2023 में 2 करोड़ 89 लाख की अचल संपत्ति

अब साल 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान देवेंद्र यादव की चल संपत्ति 1 करोड़ 40 लाख 43 हजार 29 रुपए और अपनी पत्नी श्रुतिका की आय 1 करोड़ 48 लाख 62 हजार 451 बताई। इस तरह पांच साल में अचल संपत्ति बढ़कर कुल 2 करोड़ 89 लाख 5 हजार 481 हो गई। पांच साल में शून्य से बढ़कर पत्नी की अचल संपत्ति करोड़ में पहुंच गई।

आय के स्रोत का गलत ब्यौरा दिया गया

पीयूष जैन ने बताया कि शपथ पत्र में देवेन्द्र यादव ने अपनी आय का स्रोत सुपरवीजन, मानदेय और मकान किराया बताया है। जबकि देवेंद्र के वकील ने पीयूष को मानहानि का नोटिस दिया है, उसमें उनकी आय का स्रोत कृषि और उससे संबंधित व्यापार बताया है। इसलिए या तो देवेंद्र के वकील ने गलत जानकारी दी या देवेंद्र ने चुनाव आयोग को गलत जानकारी दी है।

देवेंद्र ने अपनी पत्नी को दिया है कर्ज

सीए पीयूष ने बताया कि विधायक देवेंद्र यादव के परिवार में सभी एक हैं। उसके बाद भी वो अपनी संपत्ति से एक दूसरे को कर्ज देते हैं। दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर देखा जाए तो देवेंद्र यादव ने अपनी पत्नी श्रुतिका ताम्रकार को करोड़ों का कर्ज दिया है। जब पति और पत्नी की आय एक मानी जाती है, तो उसमें ऋण दिखाना का कारण समझ से परे हैं।

भाजपा वाले फैला रहे हैं भ्रम- विधायक प्रतिनिधि

इस मामले में देवेंद्र यादव के विधायक प्रतिनिधि एकांश बंछोर ने कहा कि सभी आरोप गलत हैं। भाजपा की ओर से केवल भ्रम फैलाने का काम किया जा रहा है। भाजपा के लोगों के पास अब कोई काम नहीं बचा है। विधानसभा चुनाव में हार की पूरी उम्मीद के साथ कार्यकर्ता चिंता ग्रसित हो गए हैं।

उन्होंने जो पैसा अपनी पत्नी और भाई को दिया है, वह राशि उन्हें शासन के द्वारा दी गई है। जब वह महापौर थे। उसके बाद फिर विधायक बने, तो मानदेय मिला। उनका खर्च ज्यादा नहीं है, इसलिए वो राशि बची थी। जब पत्नी और भाई को पैसे दिए तो भाजपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं के पेट में दर्द शुरू हो गया है।

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