छात्र पर खर्च होते हैं औसतन 150 रुपए:11 परीक्षाओं में 12 लाख फार्म, 4 लाख गैरहाजिर, 7 करोड़ बर्बाद

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छत्तीसगढ़ में व्यापमं और पीएससी की परीक्षाओं में फीस माफ होने के बाद से लगातार आवेदन करने वालों की संख्या बढ़ रही है। दरअसल, इन परीक्षाओं के लिए फार्म तो भर देते हैं, लेकिन परीक्षा में शामिल नहीं होते। प्रदेश में पिछले एक-दो महीनों में व्यापमं ने 11 परीक्षाएं लीं। इनमें 12 लाख से ज्यादा लोगों ने फार्म भरे, लेकिन 4 लाख से ज्यादा परीक्षा देने ही नहीं आए। जानकारों का कहना है कि एक छात्र के पीछे औसतन डेढ़ सौ रुपए खर्च होते हैं। इस हिसाब से 7 करोड़ रुपए बर्बाद हुए हैं। अग्रसेन कॉलेज कामर्स के विभागाध्यक्ष डॉ. अमित अग्रवाल के अनुसार जितने फार्म आते हैं, उसके अनुसार संस्था को व्यवस्था करनी पड़ती है। बाद में उपस्थिति कम होने से आिर्थक नुकसान होता है।

भास्कर ने व्यापमं से हुई पिछली परीक्षाओं का विश्लेषण किया। इसमें यह बात सामने आई कि विभिन्न परीक्षाओं के लिए आवेदन तो ज्यादा आ रहे, लेकिन परीक्षा देने वालों की संख्या काफी कम है। कुछ महीने पहले प्रदेश के एग्रीकल्चर व हार्टीकल्चर कॉलेजों में प्रवेश के लिए व्यापमं से प्री एग्रीकल्चर टेस्ट (पीएटी) का आयोजन किया गया। इसके लिए 49 हजार छात्रों ने फार्म भरा था। इसके अनुसार व्यापमं ने तैयारी की, लेकिन परीक्षा देने 24 हजार परीक्षार्थी ही पहुंचे। प्री इंजीनियरिंग टेस्ट के 23 हजार फार्म, जबकि 12 हजार परीक्षा देने पहुंचे। इसी तरह व्यापमं से प्री फार्मेसी टेस्ट, प्री पॉलीटेक्निक टेस्ट, प्री.बीएड-डीएलड, टीईटी, नर्सिंग समेत अन्य परीक्षाएं आयोजित की गई। इनके लिए साढ़े 12 लाख से अधिक फार्म मिले थे। इनमें से 7 लाख 71 हजार परीक्षा देने पहुंचे।

बड़ी परीक्षाओं में प्रति छात्र 150 रुपए खर्च

व्यापमं से होने वाली बड़ी परीक्षाओं का खर्च प्रति छात्र 150 रुपए आता है। इसके आंसरशीट, प्रश्नपत्र, गोपनीय सामग्री ले जाने का खर्च, केंद्र का खर्च समेत अन्य शामिल है। छोटी परीक्षाएं, जिसमें छात्रों की संख्या 50 हजार से कम है। उसका खर्च प्रति छात्र 250 आता है।

एक्सपर्ट व्यू – नई व्यवस्था बनानी चाहिए

व्यापमं या पीएससी की परीक्षा फीस माफ करना अच्छा है। लेकिन सरकारी संसाधनों का नुकसान न हो, यह व्यवस्था भी बनानी चाहिए। कई परीक्षाओं में छात्र फार्म तो भर देते हैं, लेकिन परीक्षा देने नहीं आते। इससे आर्थिक नुकसान हो रहा है।
-राजीव गुप्ता, शिक्षाविद् व संयोजक निजी महाविद्यालय संघ

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