छत्तीसगढ़ में लगातार ऑनलाइन ठगी के मामले बढ़ रहे हैं। ज्यादातर में टेलीग्राम ऐप या फिर निवेश के नाम पर APK फाइल डाउनलोड कराई गईं। पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि, प्रदेश में इस साल जुलाई तक 16811 केस ठगी के सामने आ चुके हैं। KBC, सस्ते लोन, शेयर ट्रेडिंग का झांसा देकर ठगी की गई है। इसके अलावा IT एक्ट में 618 मामले दर्ज हुए हैं। इसे देखते हुए रायपुर पुलिस ने जन जागरूकता पखवाड़ा शुरू किया है। इसमें हर दिन साइबर ठगी के अलग-अलग पैटर्न से बचने के तरीके बताए जा रहे हैं।
स्कैमर्स करते हैं वॉट्सऐप का फर्जी यूज
इसमें कॉल करने वाला व्यक्ति आपके परिवार के किसी सदस्य को किसी केस में फंसने की बात या हिरासत में होने की बात करता है। साथ ही कहता है कि अगर केस से बचाना है तो रुपए अकाउंट में डाल दो। कुछ लोग पैनिक होकर पैसे ट्रांसफर भी कर देते हैं, बाद में पता चलता है कि ये स्कैम था।
क्या होता है डिजिटल अरेस्ट
किसी भी शख्स को किसी भी गलतफहमी का शिकार बनाकर डर और दहशत में डाल देने और उस डर की मदद से रकम वसूलने, यानी साइबर क्राइम का शिकार बनाने को डिजिटल अरेस्ट कहते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है, डिजिटल अरेस्ट के दौरान ठग अपने संभावित शिकार के मन में डर पैदा कर देते हैं, और उन्हें भरोसा दिला दिया जाता है कि जो भी उन्हें बताया जा रहा है, वही असलियत है। उनके या उनके किसी परिजन के साथ कुछ बुरा हो चुका है, या होने वाला है, या वह पुलिस, CBI या ED की जांच के घेरे में फंस चुके हैं। बस, इसके बाद ‘शिकार’ डरकर मान लेता है कि अगर कॉलर का कहना नहीं माना, तो बहुत बुरा होगा, या वह सचमुच गिरफ़्तार हो जाएगा।
इनसे ऐसे बच सकते हैं
ऐसे मामलों में अगर आपके पास किसी पुलिस वाले के नाम से कॉल आए तो आप ट्रू कॉलर ऐप यूज कर सकते हैं। इसके अलावा गूगल-पे, फोन-पे और पेटीएम जैसे पेमेंट ऐप पर जाकर नंबर को चेक कर सकते हैं।
इसके बाद उस कॉलर का असली नाम आपके सामने आ जाएगा। ध्यान रहे कि नाम का पता तभी चलेगा जब वो नंबर इन UPI ऐप पर रजिस्टर्ड होगा। अगर वॉट्सऐप पर नंबर नहीं दिख रहा तो साइबर क्राइम पोर्टल पर शिकायत करनी चाहिए।
ठगों के टारगेट ग्रुप
- बिजली उपभोक्ता
- बैंक अकाउंट होल्डर
- कारोबारी
- पेंशनर्स
- ऑनलाइन शॉपिंग कस्टमर
- सभी ऑनलाइन कारोबार
- डॉक्टर