हैदराबाद (हि.स.)। भारत को विश्वगुरु बनाने के उद्देश्य से आयोजित चार दिवसीय ग्लोबल सांस्कृतिक महोत्सव ‘लोक मंथन-2024’ का रविवार को समापन हो गया। यह महोत्सव हैदराबाद के शिल्पकला वेदिका में आयोजित किया गया था। समापन समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, केंद्रीय कला एवं संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत और कोयला एवं खान मंत्री जी किशन रेड्डी शामिल हुए। इस अवसर पर अयोध्या के सिद्धपीठ हनुमत निवास के श्रीमहंत आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण जी का आशीर्वचन भी हुआ।
लोक मंथन के अंतिम दिन डॉ. मोहन भागवत ने भारत के राष्ट्रीय जागरण के संदर्भ में जनमानस के बीच एकता और समरसता पर आधारित व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति समावेशी है, हम किसी के शत्रु नहीं हैं और हमें भी किसी को शत्रु मानने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि सनातन जीवन मूल्यों को अपनाने के कारण दुनिया के लोग हमसे आशाभरी नजरों से देख रहे हैं। भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए हमें आगे बढ़कर दुनिया का नेतृत्व करना होगा और यह दिशा में हम पहले ही कदम बढ़ा चुके हैं।
डॉ. भागवत ने यह भी कहा कि स्वस्थ विमर्श के लिए लोकमंथन कार्यक्रम बेहद आवश्यक हैं, और ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन गांवों और छोटे समूहों में भी किया जाना चाहिए। उन्होंने भारतीयता की बात करते हुए कहा कि हमें अपने स्वार्थों को तजकर समाज के समग्र हित में कार्य करना चाहिए। इस तरह हम भारत को फिर से विश्वगुरु का स्थान दिला सकते हैं।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि लोक मंथन भारत की प्राचीन परंपरा का हिस्सा है, जो वैश्विक स्तर पर सांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा देता है। केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत और जी किशन रेड्डी ने भी इस आयोजन को बदलते भारत की तस्वीर के रूप में प्रस्तुत किया और कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत अब विश्वगुरु बनने की दिशा में अग्रसर है।
इस कार्यक्रम में लगभग 1502 प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिसमें 13 देशों के प्रतिनिधि और भारत के विभिन्न राज्यों के लोग शामिल थे। इसके अलावा, 74 अखिल भारतीय दायित्व वाले अधिकारी और कई विशिष्ट अतिथि इस आयोजन का हिस्सा बने। समापन के दौरान 1568 कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया और लगभग 2 लाख 10 हजार लोग इस महोत्सव में शामिल हुए, जिसमें छात्रों की भी बड़ी संख्या रही।