राष्ट्र सर्वोपरि की भावना का संचार बेहद अनिवार्य..!

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राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने लोकमंथन-2024 के उद्घाटन सत्र में अपने उद्बोधन में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और एकता के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत की विविधता में एकता को बनाए रखना हर नागरिक का कर्तव्य है, और यह आयोजन इस उद्देश्य को पूरा करने में सहायक है। उनके अनुसार, भारत की संस्कृति की विविधता न केवल हमारी एकता को सशक्त बनाती है, बल्कि इस विविधता से हमारे समाज को अद्वितीय सौंदर्य भी मिलता है।

राष्ट्रपति मुर्मू ने यह भी कहा कि भारत की सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को समझना और उसे सहेजना आवश्यक है। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि लोकमंथन जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से देशवासियों को भारत की महानता से परिचित कराया जा रहा है, विशेष रूप से नारी शक्ति और शौर्य परंपराओं को सम्मानित करने के लिए पुण्यश्लोक लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर और रानी रुद्रमा देवी जैसी महान वीरांगनाओं के जीवन पर आधारित नाटकों का मंचन किया जाएगा।

उन्होंने भारत की प्राचीन विचारधारा और उसके दूर-दूर तक प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति की छाप आज भी दुनिया के कई देशों की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में देखी जा सकती है। यह प्रभाव “इंडोस्पेयर” के रूप में जाना जाता है, जहां भारत के जीवनमूल्यों और सांस्कृतिक धरोहर का प्रभुत्व रहा है।

राष्ट्रपति मुर्मू ने यह भी उल्लेख किया कि भारत को पुनः एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के लिए सभी नागरिकों में एकता और राष्ट्रीयता की भावना को प्रबल करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि लोकमंथन द्वारा इस भावना का प्रसार एक सकारात्मक कदम है, जो भारत के समृद्ध भविष्य की दिशा में अहम योगदान देगा।

समाप्ति में, राष्ट्रपति ने यह भी बताया कि भारत में औपनिवेशिक मानसिकता के उन्मूलन के लिए कई सकारात्मक परिवर्तन किए गए हैं, जैसे राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्यपथ रखना और राष्ट्रपति भवन में दरबार हॉल का नाम बदलकर गणतंत्र मण्डपम् रखना। यह सब बदलाव भारत की समृद्ध संस्कृति और गौरव को पुनः स्थापित करने के प्रयासों का हिस्सा हैं।

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