छत्तीसगढ़ में अब नगर निगम के महापौर और नगर पालिका तथा नगर पंचायत के अध्यक्ष के चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होंगे, यानी जनता सीधे इन पदों के लिए मतदान करेगी। यह निर्णय मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की अध्यक्षता में सोमवार को हुई मंत्रिमंडल बैठक में लिया गया। इसके तहत नगर निगम और नगर पालिका अधिनियम में संशोधन की मंजूरी भी दी गई है, जो भूपेश सरकार के फैसले को पलटते हुए लागू किया जाएगा।
इसके साथ ही ओबीसी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर निकायों में आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया है। पहले ओबीसी के लिए आरक्षण की सीमा 25 प्रतिशत थी, जिसे अब शिथिल कर दिया गया है, और यह संख्या ओबीसी की आबादी के अनुपात में निर्धारित होगी।
मंत्रिमंडल ने कई अन्य महत्वपूर्ण फैसले भी लिए, जिनमें पीडीएस में चना वितरण के लिए नान को चना खरीदी ई-ऑक्शन से करने की मंजूरी और राज्य में पर्यटन को उद्योग का दर्जा देने का निर्णय शामिल है।
वहीं, महापौर और अध्यक्ष के सीधे चुनावों के पीछे यह तर्क है कि अप्रत्यक्ष चुनावों में अक्सर तख्तापलट का खतरा बना रहता है, खासकर जब सत्ता पक्ष और विपक्ष के पार्षदों की संख्या में अंतर बहुत कम होता है। इस बदलाव से शहर सरकार की स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा और पार्षदों के दबाव से महापौर और अध्यक्ष के फैसलों में कोई विरोधाभास नहीं होगा।
अब चुनाव के दौरान, मतदाता महापौर और अध्यक्ष के लिए अलग-अलग वोट डालेंगे, साथ ही पार्षद पद के लिए भी मतदान करेंगे। पहले छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद भूपेश सरकार ने 2019 में महापौर और अध्यक्ष के चुनावों को अप्रत्यक्ष तरीके से कराने का निर्णय लिया था, जिसे अब बदल दिया गया है।