सुकमा जिले के चिंतलनार थाना क्षेत्र के एक छोटे से गांव तिम्मापुर में एक दिल दहला देने वाली घटना हुई। यहां रहने वाली 10 साल की बच्ची सोढ़ी मल्ले को नक्सलियों द्वारा जमीन में दबाकर रखी गई एक आईईडी (इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) का शिकार बनना पड़ा। बच्ची ने इसे एक खिलौना समझा और जैसे ही उसने उसे छुआ, जोरदार धमाका हुआ। इस धमाके में बच्ची गंभीर रूप से घायल हो गई और उसके शरीर से खून बहने लगा।
धमाके के बाद मल्ले के पिता उसे अपनी गोदी में उठाकर पास के गांव फूलनपाड़ पहुंचे। यहां, हाल ही में खोला गया केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) का कैंप था, जहां बच्ची को प्राथमिक उपचार दिया गया। इसके बाद उसे जगदलपुर स्थित मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया।
मल्ले की हालत गंभीर थी। उसका चेहरा और आंखें बुरी तरह से झुलस चुकी थीं। तेज दर्द से तड़पती मल्ले ने बार-बार अपनी मां और पिता से एक ही सवाल पूछा, “आखिर ये मेरे साथ क्यों हुआ? मैंने क्या गलत किया था?” मासूम बच्ची का यह सवाल न केवल उसके परिवार, बल्कि समाज और देश के लिए भी एक बड़ा सवाल बन गया है। क्या किसी बच्चे का इस तरह से आतंकवाद का शिकार होना सही है?
मासूम का दर्द और उसके सवाल
जगदलपुर में भर्ती होने के बाद मल्ले की हालत और भी नाजुक हो गई। उसका शरीर दर्द से भर गया था और वह लगातार अपनी मां और पिता से पूछ रही थी, “मुझे किस बात की सजा मिली है?” बच्ची का यह सवाल उसकी दादी के लिए भी जवाब देने से परे था। दादी को भी यह समझ में नहीं आ रहा था कि उसे इस दर्द का क्या कारण है।
चूंकि बच्ची का दर्द बहुत तेज था, उसकी दादी उसे कुछ देर के लिए ध्यान हटाने के लिए बूंदी (मिठाई) खिलाती थी। वह कोशिश कर रही थी कि बच्ची के दर्द से कुछ पल के लिए उसका ध्यान भटक सके, लेकिन किसी के पास इस सवाल का जवाब नहीं था कि नक्सलियों के आतंक से मल्ले को क्यों निशाना बनाया गया।
उस दिन, मल्ले के पिता, केसा, भी घबराए हुए थे। वह अपने परिवार के बारे में सोचते हुए लगातार डर रहे थे। केसा ने बताया कि रविवार की सुबह जब मल्ले घर के पास खेल रही थी, तभी धमाका हुआ। मल्ले की चीख सुनकर वह दौड़े और देखा कि उसकी बेटी का चेहरा और हाथ बुरी तरह से जल चुके थे।
केसा ने बताया कि जब उसे अपनी बेटी को गोद में उठाकर अस्पताल ले जाना था, तो वह तुरंत पास के सीआरपीएफ कैंप पहुंचे, जहां बच्ची को प्राथमिक उपचार मिला। इसके बाद उसे जगदलपुर स्थित मेडिकल कॉलेज ले जाया गया।
नक्सलियों का आतंक: ग्रामीणों के लिए खतरा
यह घटना छत्तीसगढ़ राज्य में नक्सलियों के आतंक का केवल एक और उदाहरण है। पिछले 24 वर्षों में बस्तर जिले में नक्सलियों की हिंसा के कारण 1750 से अधिक ग्रामीणों की जान जा चुकी है। इनमें से कई लोगों को नक्सलियों ने जन अदालत लगाकर क्रूर तरीके से मारा, जबकि कई अन्य आईईडी धमाकों में मारे गए।
छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले आम बात हो गई हैं, और इस क्षेत्र के ग्रामीणों के लिए हर दिन एक नया खतरा बनकर आता है। आईईडी के हमलों ने कई निर्दोष लोगों की जान ली है और कई अन्य गंभीर रूप से घायल हुए हैं। राज्य में आईईडी की चपेट में आकर 700 से अधिक ग्रामीण घायल हुए हैं।
मासूमों का क्या दोष?
मल्ले जैसी घटनाएं हमें सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या किसी मासूम का इस आतंक के बीच जीवन बिताना सच में सही है? एक 10 साल की बच्ची, जो सिर्फ खेल रही थी, को इस तरह से अपनी जान गंवानी पड़ी। क्या यह सही है कि एक बच्ची को सिर्फ नक्सलियों के आतंक का शिकार बना दिया जाए, क्योंकि वह एक युद्ध क्षेत्र में रह रही है? यह सवाल न केवल मल्ले के परिवार से, बल्कि हम सभी से पूछा जाना चाहिए कि क्या किसी बच्चे को इस तरह का जीवन जीने का अधिकार नहीं है, जहाँ हर दिन उसे मौत का खतरा हो?
नक्सलवाद का समाधान और भविष्य
नक्सलवाद एक जटिल समस्या है, जिसका समाधान सिर्फ सरकार या सुरक्षा बलों के हाथ में नहीं है। यह एक सामाजिक और आर्थिक समस्या भी है, जिसे जड़ से खत्म करना होगा। यदि हम चाहते हैं कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, तो हमें नक्सलवाद के कारणों को समझना होगा और उनके समाधान के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
समाज के सभी वर्गों को इस संकट से निपटने के लिए एकजुट होना होगा। बच्चों के लिए एक सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करना, हर नागरिक का अधिकार है, और इसे प्राप्त करने के लिए हमें सब मिलकर काम करना होगा।
मल्ले जैसी घटनाओं को देखकर यह साफ होता है कि नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई केवल सुरक्षा बलों का काम नहीं है, बल्कि समाज को भी इस समस्या को हल करने में योगदान देना होगा। बच्चों को इस तरह के खतरों से बचाना हमारी जिम्मेदारी है। हर मासूम का यह सवाल, “आखिर मेरा क्या दोष?” हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम उनके लिए एक बेहतर, सुरक्षित भविष्य बना सकते हैं।