आज का राजनांदगांव अपनी भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति के कारण बहुत चर्चा में है। राजनांदगांव पहले एक रियासत थी जिसके राजा बैरागी होते थे। इसकी स्थापना 1776 में हुए महंत प्रहलाद दास बैरागी ने की थी। और तब इस रियासत का नाम नांदगांव था। इन बैरागी राजाओं ने अपनी रियासत की राजधानी का नाम भगवान कृष्ण के पिता नंद के नाम पर नंदग्राम रखा था। बाद में यही नंदग्राम नांदगांव हो गया। छत्तीसगढ़ में वर्तमान से कुछ समय पहले तक लोग राजनांदगांव को नांदगांव ही कहकर संबोधित करते थे। और अब भी, कुछ पुरानी पीढ़ी के लोग नांदगांव शब्द ही प्रयोग में लाते हैं। सवाल यह है कि नांदगांव एकाएक राजनांदगांव कैसे कहलाया जाने लगा।
छत्तीसगढ़ में रेल लाईन डालने का सबसे पहला विचार तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के ध्यान में 1863 में आया था और नागपुर से राजनांदगांव के बीच मीटर गेज डालने का प्रस्ताव बना। सन् 1882 में नागपुर से राजनांदगांव के बीच मीटर गेज लाईन बनाई गई। इसी रेल मार्ग को बाद में बड़ी लाईन में बदलकर रायपुर तक और 1889 में बिलासपुर तक ले जाया गया।
सन् 1900 में इसी रेल मार्ग को कलकत्ता, आज के कोलकाता, से जोड़ा गया। दिलचस्प बात यह है कि जब नागपुर से राजनांदगांव तक रेल लाईन डाली गई तब राजनांदगांव नाम का कोई स्थान नहीं था, बल्कि नांदगांव रियासत की राजधानी नांदगांव थी। रेल लाईन इसी नांदगांव तक बनाई गई थी।
बहरहाल, ‘ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे‘ में नांदगांव नाम का एक रेलवे स्टेशन पहले ही था। इसी बात को ध्यान में रखकर रेलवे प्रशासन ने नांदगांव स्टेशन का नाम राजनांदगांव स्वीकार किया। इसके बाद से नांदगांव रियासत की राजधानी नांदगांव की जगह राजनांदगांव कहलायी जाने लगी और रियासत का नाम भी राजनांदगांव हो गया।
छत्तीसगढ़ की रियासतों में सरगुजा की अपनी एक अलग पहचान है। सरगुजा रियासत भौगोलिक, प्रशासनिक दृष्टि से ब्रिटिश शासन के दौरान तत्कालीन बंगाल प्रांत के छोटा नागपुर क्षेत्र में शामिल थी। दिलचस्प बात यह है कि सरगुजा रियासत में किसी नगर या ग्राम का नाम सरगुजा नहीं है।
सरगुजा नाम की व्युत्पत्ति को लेकर अनेक धारणाएं हैं। कुछ स्थानों पर इसे सिरगुजा और कुछ अन्य स्थानों पर सुरगुजा भी उल्लेखित किया गया है। खैर, सन् 1905 में बंगाल विभाजन की ऐतिहासिक घटना के तहत सरगुजा रियासत कुछ अन्य रियासतों के साथ तत्कालीन मध्यप्रांत एवं बरार में शामिल हो गई।
उस समय सरगुजा रियासत की राजधानी का नाम विश्रामपुर था। यह धारणा है कि भगवान राम ने वनवास के दौरान यहां विश्राम किया था। उस आधार पर राजधानी का नाम विश्रामपुर था। विश्रामपुर में प्रख्यात महामाया देवी के मंदिर का 1910 में नवनिर्माण हुआ था।
यह संयोग है कि 1910 में ही सरगुजा के राजा महाराज रामानुजशरण सिंह देव को पहला पुत्ररत्न प्राप्त हुआ। इस पुत्र का नाम रखा गया अम्बिकेश्वरशरण सिंहदेव। यह माना जाता है कि इसी समय सरगुजा रियासत की राजधानी विश्रामपुर का नाम बदलकर अंबिकापुर कर दिया गया था।