B.S.P की 465 एकड़ जमीन व कई मकानें पुराने कब्जे में, कहीं फॉर्म हाउस तो कहीं उद्योग चल रहे…!

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25 से 30 साल पुराना कब्जा, कब्जे की जमीन पर ईंट भट्टे तक चल रहे….!

बीएसपी की लगभग 465 एकड़ जमीन अवैध कब्जे में है। इसमें शहर के विभिन्न हिस्से और आसपास के ग्रामीण अंचल सहित राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे अधिग्रहित की गई बेशकीमती जमीन भी शामिल है। कब्जा भी हाल-फिलहाल में नहीं किया गया, बल्कि 25-30 वर्षों से है। इन जमीन में कहीं उद्योग चल रहे हैं, तो कहीं ईट भट्‌ठे। कहीं आलीशान फॉर्म हाउस बनाकर खेती की जा रही है तो कहीं तालाब बनाकर मछली पालन। नेवई, मरोदा और रूआबांधा में तो बीएसपी की जमीन पर पूरी बस्ती ही बस गई है।

अब सेल कार्पोरेट आफिस बीएसपी से एक-एक इंच जमीन का हिसाब मांग रहा है। बीएसपी प्रबंधन भी नए सिरे से कब्जे वाली जमीन के साथ-साथ कब्जे वाले मकानों की जानकारी जुटाने में लग गया है। बताया गया कि खाली जमीन जिस तेजी से कब्जे में गए, टाउनशिप में खाली मकानों का भी वही हश्र हुआ। ताबड़तोड़ कार्रवाई के बाद भी वर्तमान में करीब 1100 मकान कब्जे में है। इनमें ज्यादातर मकान कैंप और खुर्सीपार एरिया के हैं। जहां कब्जेधारियों को इतना खौफ है कि प्रबंधन चाहकर भी अपने मकान खाली नहीं करा पा रहा है।

मकानों में कब्जों के कारण वहां रहने वाले लोग न बिजली बिल का भुगतान कर रहे, न ही पानी और सफाई कर। इस वजह से ही प्रबंधन को हर साल 3 से 5 करोड़ का नुकसान हो रहा है। अधिकारियों के मुताबिक पिछले एक-डेढ़ साल में प्रबंधन मात्र 35 एकड़ जमीन और 700 आवास कब्जामुक्त कराए गए हैं। 400 छोटे-बड़े निर्माणों का ध्वस्त किया है। लगभग 250 डिक्री आदेश का क्रियान्वयन किया है।

कब्जों को लेकर सेल चेयरमैन का रूख सख्त, जानकारी मांगी कंपनी की संपत्ति में कब्जे को लेकर सेल चेयरमैन अमरेंद्रु प्रकाश का रूख सख्त है। उन्होंने गुरुवार को बोकारो में इसे लेकर संकेत दिए हैं। उन्होंने कहा कि सभी इकाइयों से कब्जेधारियों की जानकारी मंगवाई है। इसके बाद बेदखली की कार्रवाई की रणनीति बनाई जाएगी। चेयरमैन के रूख को देखते हुए जल्द ही कब्जेधारियों पर कार्रवाई किए जाने की उम्मीद बढ़ी है। हालांकि इसके पहले इस्पात मंत्रालय भी सेल से कब्जों से जुड़ी जानकारी मांग चुका है।

इन गांवों में आज भी बीएसपी की जमीन, ज्यादातर कब्जे में जहां आज पूरा भिलाई बसा है, उसके अलावा भी नंदिनी, अहिवारा, कुम्हारी, उतई, डुमरडीह, कुटेलाभाठा, जेवरा-सिरसा, चिखली, रवेलीडीह, मोहलाई, पतोरा, परेवाडीह, देवरझाल, चुनकट्टा, मुड़पार सहित करीब दो दर्जन गांवों में संयंत्र के लिए उस समय सरकार ने टुकड़ों-टुकड़ों में भी जमीन अधिग्रहीत की थी। आज यहां की ज्यादातर जमीन का मालिक कोई और बनकर बैठा है।

  • नेवई , मरोदा क्षेत्र में 363 एकड़ में पूरा शहर बीएसपी की जमीन पर बसा हुआ है। यहां रसूखदार लोग होटल, ढाबे, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स से लेकर सभी तरह के कारोबार बीएसपी की जमीन पर ही कर रहे हैं।
  • चिखली में नदी किनारे की जमीन पर आज भी एक रसूखदार कब्जा कर केले व पपीते की खेती कर रहा है। महमरा में तो एक बड़े उद्योगपति ने आम का बगीचा ही बना लिया है। हाल ही में खाली करवाए हैं।
  • अहेरी और बिरेभाट स्थित 7 एकड़ जमीन पर कब्जेधारी फार्म हाउस बनाकर वहां कई साल से धान, केला, पपीता और अन्य फसलों की खेती करता रहा। 60 करोड़ की जमीन को अभी वापस ले पाया।
  • नंदिनी माइंस की तकरीबन 3000 एकड़ जमीन का अब कोई माई-बाप नहीं है। लोग जहां मर्जी निर्माण कर ले रहे हैं। आवासों पर भी बेजा कब्जा है।
  • रायपुर नाका में लोग बीएसपी की जमीन को घेरकर डेयरी फॉर्म चला रहे हैं। यहां भी पूरी बस्ती बस गई है। खुर्सीपार, कैंप में भी बीएसपी की जमीन को लोग अपना समझने लगे हैं।
  • कुटेलाभाठा और जेवरा सिरसा में बीएसपी ने अपनी जमीन आईआईटी के लिए दी है। इससे पहले कुटेलाभाठा में बस्ती बस गई थी। सिरसा में दुर्ग नगर निगम ने अपना डॉग हाउस बना दिया था।

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