“कपड़े संभालें या किताबें?” — सरकारी स्कूलों में ओवरसाइज़ यूनिफॉर्म बनी बच्चों की बड़ी मुसीबत

Spread the love

रायपुर |
छत्तीसगढ़ के शासकीय स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए नया सत्र एक नई मुसीबत लेकर आया है। किताबें और कॉपियां तो किसी तरह संभाल ली जाती हैं, लेकिन अब बच्चे अपनी ढीली-ढाली यूनिफॉर्म को भी संभालते फिर रहे हैं। सरकार द्वारा भेजी गई स्कूली पोशाकें न तो बच्चों के नाप की हैं, न ही पहनने लायक गुणवत्ता की।


माप लेकर भी गलत साइज! — “बच्चे कपड़े पहनें या सम्हालें?”

राज्य सरकार हर साल पहली से आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों को हथकरघा बोर्ड द्वारा तैयार यूनिफॉर्म उपलब्ध कराती है। इस बार भी अप्रैल में स्कूलों से छात्रों का माप मंगाया गया था ताकि जून में कपड़े बांटे जा सकें। लेकिन वास्तविकता यह है कि बच्चों को जो कपड़े बांटे जा रहे हैं, वे साइज में इतने बड़े हैं कि छोटे बच्चों के हाफपैंट घुटनों से नीचे लटक रहे हैं, और लड़कियों की ट्यूनिक एड़ियों तक पहुंच रही है।

छात्र अब बेल्ट, पिन, और अन्य ‘जुगाड़’ के सहारे यूनिफॉर्म पहनकर किसी तरह स्कूल आ रहे हैं।


टीनेजर्स को भी हाफपैंट! शर्मिंदगी का कारण बनी यूनिफॉर्म

सबसे ज्यादा दिक्कत आठवीं कक्षा के छात्रों को हो रही है, जो किशोरावस्था में हैं। इन्हें भी पहली कक्षा के बच्चों की तरह हाफ पैंट ही मिल रहे हैं, जो उनकी उम्र और शरीर के हिसाब से बिल्कुल अनुपयुक्त हैं।

बच्चे खुद पैसे खर्च कर फूल पैंट सिलवा रहे हैं, जबकि कई लड़कियां मजबूरी में बाजार से खुद नए कपड़े खरीदने पर मजबूर हैं। शिक्षा के अधिकार की बात करने वाली व्यवस्था में यह एक गंभीर विसंगति है।


हर हफ्ते उधड़ रही सिलाई, टूट रहे बटन: क्वालिटी पर भी सवाल

यूनिफॉर्म की गुणवत्ता भी छात्रों के लिए सिरदर्द बनी हुई है।

  • हर दूसरे हफ्ते शर्ट के बटन टूट रहे हैं।

  • सिलाई उधड़ रही है।

  • कपड़े इतने खराब हैं कि कई विद्यार्थी यूनिफॉर्म लेने से ही मना कर देते हैं या पहनने की बजाय अपने पैसे से बाजार से कपड़े खरीदते हैं।

शिक्षक संगठनों ने भी कई बार इस खराब क्वालिटी की शिकायत की है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।


‘बच्चों का साइज पूछा ही नहीं जाता’ — शिक्षक संघ का आरोप

शिक्षक संघ के अध्यक्ष संजय शर्मा ने बताया कि ज़मीनी स्तर पर छात्रों से माप पूछने की प्रक्रिया ही नहीं अपनाई जाती।

“सरकार तीन फिक्स साइज (छोटा, मीडियम, बड़ा) में यूनिफॉर्म भेजती है — वो भी बराबर संख्या में। स्कूलों में शिक्षक बच्चों की ऊंचाई देखकर कपड़े बांटते हैं, लेकिन यह तरीका पूरी तरह गलत और अव्यवहारिक है।”


क्या है समाधान?

  1. प्रत्येक छात्र से माप लेकर कपड़े तैयार किए जाएं।

  2. स्थानीय स्तर पर वितरण से पहले साइज बदलने की व्यवस्था हो।

  3. कपड़ों की गुणवत्ता पर सख्त निगरानी रखी जाए।

  4. शिकायतों के लिए हेल्पलाइन और ज़िम्मेदार अधिकारी तय हों।


“सरकारी मदद या मजबूरी?”

हर साल लाखों की लागत से बांटे जा रहे स्कूली कपड़े यदि बच्चों को शर्मिंदा और असहज कर रहे हैं, तो सवाल उठना लाज़मी है। एक ओर सरकार शिक्षा के अधिकार, स्वच्छ भारत, और आत्मनिर्भर भारत की बात करती है, दूसरी ओर बच्चे ढीले कपड़े पहनकर किताबें संभालने के साथ-साथ खुद को भी संभालने में लगे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *