छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा संचालित 751 स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी एवं हिंदी माध्यम स्कूलों में विद्यार्थियों से इस साल भी किसी प्रकार की फीस नहीं ली जाएगी। यह निर्णय शिक्षा को सबके लिए सुलभ और समान बनाने की नीति के तहत बरकरार रखा गया है, लेकिन इस निर्णय के चलते स्कूलों के प्रबंधन पर वित्तीय दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। शासन से इन्हें मेंटेनेंस के लिए मिलने वाला बजट उनकी जरूरतों के मुकाबले बेहद कम है।
इस साल स्कूलों के लिए आवंटित कुल बजट में से केवल 1.5 लाख रुपये तक की राशि ही बड़े स्कूलों को मेंटेनेंस, परीक्षा संचालन, उत्तर पुस्तिका, यूनिफॉर्म और स्टेशनरी जैसे खर्चों के लिए दी गई है, जबकि जिन स्कूलों में दर्ज संख्या कम है, उन्हें महज 80 हजार रुपये तक की राशि दी गई है। यह बजट स्कूलों की वास्तविक ज़रूरतों और संचालन लागत से कहीं कम है। वास्तव में, कई बड़े स्कूलों का सालाना खर्च 10 से 12 लाख रुपये तक पहुंचता है, ऐसे में महज डेढ़ लाख में पूरे साल की व्यवस्था चलाना लगभग असंभव हो गया है।
इन स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए पहले शाला समितियों के माध्यम से अतिरिक्त शिक्षक और चपरासी नियुक्त किए गए थे, लेकिन अब बजट की कमी के चलते उन्हें हटा दिया गया है, जिससे शैक्षणिक गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ने लगा है। ये स्कूल जब शैक्षणिक सत्र 2019-20 में खोले गए थे, तभी से फीस पर पूर्ण पाबंदी लगा दी गई थी। इसके बाद से स्कूलों के तमाम खर्चों की भरपाई शासन से मिलने वाले बजट से की जा रही है, लेकिन अब वह राशि अपर्याप्त साबित हो रही है।
बजट का गणित और असली हालात:
राज्य शासन ने इस साल स्वामी आत्मानंद स्कूलों के लिए कुल 1000 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया है, जिसमें से लगभग 750 करोड़ रुपये केवल वेतन भुगतान में खर्च हो जाएंगे। शेष 250 करोड़ रुपये में से बड़ी राशि स्कूल भवनों के निर्माण या विस्तार में खर्च की जाएगी। इस राशि में मेंटेनेंस के लिए सिर्फ 7 करोड़ रुपये ही आवंटित हुए हैं, जो 751 स्कूलों के हिसाब से बहुत कम है।
गौरतलब है कि इनमें से लगभग 400 स्कूल हिंदी माध्यम के हैं, जिन्हें कम दर्ज संख्या वाले स्कूलों को मजबूत करने के उद्देश्य से स्वामी आत्मानंद स्कूल के रूप में अपग्रेड किया गया था। लेकिन उनके सामने अब सबसे बड़ी चुनौती संचालन के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी है।
बीपीएल बच्चों के लिए मुफ्त यूनिफॉर्म, लेकिन इंतजाम स्कूलों को करना है:
इन स्कूलों में पढ़ने वाले बीपीएल श्रेणी के बच्चों को मुफ्त यूनिफॉर्म उपलब्ध कराना अनिवार्य है, लेकिन इसके लिए अलग से कोई बजट नहीं दिया गया है। स्कूल प्रशासन को स्वयं इसकी व्यवस्था करनी होती है। कई स्कूलों ने इसके लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों और उद्योगपतियों से मदद की गुहार लगाई है। कुछ स्थानों पर जनसहयोग से इस समस्या का हल निकालने की कोशिश की जा रही है, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है।
फीस पूरी तरह माफ, लेकिन प्रबंधन के पास साधन नहीं:
स्वामी आत्मानंद स्कूलों को “प्राइवेट स्कूल जैसी सुविधा, लेकिन पूरी तरह मुफ्त शिक्षा” के मॉडल पर खड़ा किया गया था। शुरुआत में इसकी व्यापक सराहना भी हुई और बड़ी संख्या में छात्रों का रुझान इन स्कूलों की ओर बढ़ा। फीस माफ होने के कारण गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों ने अपने बच्चों का दाखिला यहां कराया, लेकिन अब प्रबंधन के पास इन बच्चों की जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं। पहले जब न्यूनतम फीस ली जाती थी, तब स्कूल प्रबंधन अपनी जरूरतें स्वयं पूरी कर पाते थे, लेकिन अब वे पूरी तरह शासन पर निर्भर हैं, और शासन से भी उन्हें अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पा रहा है।