संवेदनशीलता की मिसाल हैं सफेद बाघ: मौसम बदला नहीं कि व्यवहार भी बदल जाता है

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मिलाई 29 साल पहले 1997 की बात है। वह दृश्य जेहन में आज भी तारी है जब ओडिशा के नंदनकानन जू से सफेद बाध का जोड़ा तरुण और तापसी यहां पहुंचा था। जैसे ही गाड़ी मैत्रीबाग के भीतर पहुंचो, सब लोग उसकी ओर दौड़ पड़े। पिंजरे में कैद और दो दिन के सफर में दोनों बहुत धक चुके थे। वे कांप रहे थे। भूखे थे। कुछ हरे सहने भी।

घंटेभर आसपास के माहौल को एकदम शांत रखा। इसके बाद दोनों को खासतौर पर उनके लिए ही बनाए गए केज मंचर-7 में शिफ्ट किया। मैत्रीबाग में सफेद बाघ आने को खबर दुर्ग-भिलाई ही नहीं, अविभाजित मध्यप्रदेश के अन्य जिलों तक फैल गई। साढ़े चार साल के युवा तरुण तापसी की दहाड़ सुनने रोजाना बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचने लगे।

इधर हम लोगों की असली परीक्षा शुरू हो गई। व्हाइट टाइगर म्यूटेट वेराइटी होने के कारण बहुत ज्यादा संवेदनशील होते हैं। केयर करने वाले की बोली, वातावरण चेंज होने से बाघ के व्यवहार में भी बदानाव आने लगा था। उसे संभालना बड़ी चुनौती थी। नंदनकानन से दिए गए निर्देशों और डक्ट शेड्‌यूल का अक्षयशा पालन करते रहे। जोड़े पर निगरानी रखने सुबह से रात बने तक दो कर्मचारियों की स्पेशल ड्यूटी लगाई गई। चाध बाधिन के बीच अनुकूलता विकसित करना आसान काग नहीं है।

शिवेकेशन बेहद जटिल और स्वाभाविक रूप से जोखिम भरा कदम होता है। इसके लिए बहुत अधिक ध्यान रखना पड़ा। हमारे जू के कर्मचारी बालकोटव्या इन बाधों के लिए सिर्फ एक संरक्षक नहीं, बरिक एक मां की तरह था। बाघों की आंखों में जब भी कोई डर दिखता, बालकोटय्या दूर से पुचकारता मानों कह रहा हो, मैं हूं न। मेटिंग के दौरान तरुण और तापमी दोनों में इंटरैक्शन अच्छा रहा। आखिर में चार महीने बाद दो शावकों का जन्म हुआ।

आज इनकी सातवीं पीढ़ी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। इस समय मैत्रीबाग में 7 सफेद बाध है। इनमें 5 नर और 2 मादा हैं। इनके सबसे छोटे सदस्य बॉबी, राणा और रुस्तम हैं। आजकल फेज नंबर 7 में युवा सफेद बाघ के नोड़े विक्रम और बॉबी को साथ रखा गया है। दोनों का प्यार पावान चाड़ रहा है।

नाद ही खुशखबरी मिलेगी। बाधिन हम लोग देश के छह अन्य जू को दे चुके हैं। जवाहर लाल नेहरु जूलॉजिकल पार्क बोकारो, लखनऊ जूलॉनिकल गार्डन, जूलॉजिकल पार्क राजकोट, इंदिरा गांधी प्राणी संग्रहालय इंदौर, जूलॉजिकल रेस्क्यू सेंटर मुकुंदपुर, सतना और एक जोड़ा जंगल सफारी रायपुर भेजा है।

आज भी जब कोई शावक पैदा होता है चार महीने तक दूध पिलाने से लेकर समय पर दवा देना, ठंड और गर्मी से बचाने के जतन, सब कुछ एक मां की तरह करते हैं। शावकों की हर हरकत को नीटशीट पर लिखते हैं।

पहला कदम कब चाला, कितना चला, पहली बार खुद कब खाना खाया, खुराक कितना रहा और पहली दहाड़ कम लगाई. हर पल जैसे एक माता-पिता अपने बच्ने के लिए सहेजते हैं, वैसा सफेद बाघ के शावकों के लिए करना पड़ता है।

सफेद बाघों से है जिनका दिल का रिश्ता

ये हैं भिलाई के मैत्रीबाग के प्रमुख डॉ. एनके जैन। 300 से भी अधिक जानवरों के बोच इनका दिनभर में आना-जाना होता है। सफेद बाघ के साथ इनका भावनागक रिश्ता बन गया है इनकी देखरेख में पाहले पोसे शावक बॅवी, राणा, विक्रम, सिंघम और रूस्तग का शरीर आज भले ही विशाल हो गया है, पर जब भी डॉ. जैन पास जाते हैं. अपनापन और भरोसा महसूस करते हैं। डॉ. जैन जब भी केन के पास आते हैं तो बाध उनके करीष आकर मुंधन और स्पर्श करने लगते हैं।

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