बीजापुर में CRPF जवान ने खुद को मारी गोली: छुट्टी से लौटे जवान की बैरक में मौत, गले से सिर तक पार हुई बुलेट

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बीजापुर। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में बुधवार सुबह एक दर्दनाक घटना सामने आई, जहां CRPF के जवान ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। मृतक जवान की पहचान पप्पू यादव के रूप में हुई है, जो बिहार के भोजपुर जिले का रहने वाला था और 22वीं बटालियन, मिनगाचल में तैनात था।

घटना नैमेड़ थाना क्षेत्र की है। जवान ने सुबह करीब 5 बजे अपनी सर्विस राइफल (इंसास) से गले में गोली चलाई, जो सिर को चीरती हुई बाहर निकल गई। घटनास्थल पर ही जवान की मौत हो गई। जवान एक दिन पहले ही छुट्टी से वापस लौटा था।

SP जितेंद्र यादव ने घटना की पुष्टि करते हुए बताया कि आत्महत्या की वजह फिलहाल स्पष्ट नहीं है। मौके पर नैमेड़ पुलिस पहुंची और मर्ग कायम कर जांच शुरू कर दी है।


13 दिन पहले भी हुई थी आत्महत्या

इससे पहले 13 दिन पहले जगदलपुर के परपा क्षेत्र में पोस्टेड एक आरक्षक ने फांसी लगाकर आत्महत्या की थी। वह जशपुर जिले का निवासी था और हाल ही में परपा से लोहंडीगुड़ा ट्रांसफर हुआ था। पुलिस ने पारिवारिक विवाद को प्राथमिक कारण बताया था।


छुट्टी न मिलना बना सुसाइड की बड़ी वजह

बस्तर जैसे नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनात जवानों में आत्महत्या की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। सबसे बड़ी वजह समय पर छुट्टी नहीं मिलना और मानसिक तनाव मानी जा रही है।

कुछ जवान छुट्टी से लौटने के बाद ही खुदकुशी कर लेते हैं। रिपोर्टों के अनुसार, 80% आत्महत्याएं छुट्टी से लौटने के बाद होती हैं। इसके पीछे पारिवारिक कलह, अफसरों से संवाद की कमी और साथियों के साथ तनावपूर्ण संबंध भी बड़ी वजहें मानी जा रही हैं।


आंकड़ों से समझें बढ़ती मानसिक चुनौतियां

  • 2020 में अर्धसैनिक बलों में 3,584 जवान मानसिक रोगी, जो 2022 में बढ़कर 4,940 हो गए।

  • 2011 से 2023 तक 1,532 जवानों ने की खुदकुशी (पूर्व अर्ध सैनिक बल कल्याण संघों की रिपोर्ट)।

  • पिछले 5 वर्षों में 46,960 जवानों ने फोर्स छोड़ा।

  • अक्टूबर 2021 में केंद्र सरकार ने टास्क फोर्स बनाई थी आत्महत्या रोकने के लिए।

  • टास्क फोर्स रिपोर्ट में 80% सुसाइड छुट्टी के बाद होने की बात सामने आई।

सिस्टम पर उठते सवाल

CRPF और अन्य अर्धसैनिक बलों में मानसिक स्वास्थ्य, छुट्टी व्यवस्था और संवाद तंत्र को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। बावजूद इसके संरचनात्मक सुधारों की रफ्तार धीमी है। जवानों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अभी भी कोई प्रभावी और व्यापक समाधान जमीन पर नहीं दिखता।

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