भिलाई | सिटी रिपोर्टर
देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले दुर्ग लोकसभा क्षेत्र के पहले सांसद और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय वासुदेव श्रीधर किरोलीकर को आज की पीढ़ी लगभग भूल चुकी है। जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज़ बुलंद की और स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेते हुए कई यातनाएं सही थीं, उनके नाम को अमर करने की दिशा में अब मांगें उठने लगी हैं।
परिजनों और महाराष्ट्र मंडल की मांग : सार्वजनिक स्थलों को मिले उनका नाम
स्व. किरोलीकर के परिजनों और दुर्ग के महाराष्ट्र मंडल के सदस्यों ने मांग की है कि आने वाली पीढ़ियों को उनके त्याग और बलिदान की प्रेरणा मिल सके, इसके लिए दुर्ग रेलवे स्टेशन, वाय-शेप ओवरब्रिज (रायपुर नाका) या प्रियदर्शिनी परिसर में प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय खेल परिसर में से किसी एक स्थान का नामकरण उनके नाम पर किया जाए।
इस संबंध में प्रतिनिधिमंडल ने दुर्ग सांसद विजय बघेल से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपा। सांसद ने प्रतिनिधियों को भरोसा दिलाया कि वे इस विषय में कलेक्टर से चर्चा कर जल्द ही नामकरण समिति की बैठक बुलवाकर प्रस्ताव प्रस्तुत करवाएंगे।
जिन्होंने उठाई आवाज़
इस प्रतिनिधिमंडल में संजय वाकणकर, सुबोध देशपांडे, प्रमोद, आनंद, विजय और मृगया किरोलीकर शामिल थे।
गांधी जी से जुड़े, जेल गए, सम्मान भी मिला
परिजनों ने बताया कि वासुदेव श्रीधर किरोलीकर ने महात्मा गांधी के साथ जुड़कर दुर्ग में आज़ादी की अलख जगाई थी। वे 14 फरवरी से 31 मई 1941 तक और फिर 11 अगस्त 1942 से 24 अप्रैल 1944 तक रायपुर केंद्रीय जेल और नागपुर जेल में क्रमश: विचाराधीन और दोष सिद्ध कैदी के रूप में बंद रहे। उनके योगदान के लिए 15 अगस्त 1947 को उन्हें ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया गया।
आजादी के बाद जब देश में पहला आम चुनाव हुआ, तो 1952 में वे दुर्ग से सांसद निर्वाचित हुए। लेकिन आज न तो किसी सार्वजनिक स्थल पर उनका नाम है, न ही नई पीढ़ी को उनके योगदान की जानकारी। ऐसे में परिजनों ने मांग की है कि शासन-प्रशासन उनके नाम को सहेजने के लिए ठोस पहल करे।