नई दिल्ली।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 वर्ष पूरे होने पर विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम के दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत के रिटायरमेंट को लेकर दिए गए बयान ने सियासी हलचल मचा दी है। इस बयान के बाद विपक्ष ने केंद्र और भाजपा नेतृत्व पर सीधा हमला बोला है। विपक्ष का कहना है कि यह संदेश साफ है कि पीएम नरेंद्र मोदी को 2029 तक प्रोजेक्ट करने की तैयारी हो रही है, जबकि भाजपा के अन्य कद्दावर नेताओं को किनारे किया जा रहा है।
विपक्ष का हमला: योगी-हिमंत का क्या होगा?
सीपीआई सांसद पी. संतोष कुमार ने कहा,
“यह उनका आंतरिक मामला है, लेकिन बयान से साफ है कि भाजपा में नेतृत्व संकट है। मोदी को लेकर आरएसएस ने जो संकेत दिए हैं, उससे योगी आदित्यनाथ और हिमंत बिस्वा सरमा जैसे पीएम पद के संभावित चेहरे के लिए कोई जगह नहीं बची। यह संदेश है कि इस रेस में कोई उपविजेता नहीं होगा। यह मोदी का ही खेल है।”
कुमार ने आरोप लगाया कि भाजपा में शीर्ष नेतृत्व आपस में खींचतान में उलझा है और संघ इस समय नरेंद्र मोदी को ही एकमात्र चेहरा बनाए रखना चाहता है।
अखिलेश यादव का तंज: “नियम बदल दिए गए”
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर तीखा हमला करते हुए लिखा:
“’न रिटायर होऊंगा, न होने दूंगा’ कहने वाले अब अपनी बारी आते ही नियम बदल रहे हैं। यह दोहरापन अच्छा नहीं है। जो अपनी बात से पलटते हैं, उन पर पराये क्या, अपने भी विश्वास नहीं करते। जो विश्वास खो देता है, उसका राज भी चला जाता है।”
अखिलेश के इस बयान को भाजपा पर सीधा वार माना जा रहा है, जिससे चुनावी माहौल में विपक्ष को नया मुद्दा मिल गया है।
मोहन भागवत का बयान: “संघ में उम्र की कोई सीमा नहीं”
दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में संघ प्रमुख ने कहा,
“मैंने कभी नहीं कहा कि मैं 75 साल में रिटायर हो जाऊंगा या किसी और को होना चाहिए। संघ जो जिम्मेदारी देता है, उसे हम उम्र की परवाह किए बिना निभाते हैं। जब तक संघ चाहेगा, हम काम करेंगे।”
इस बयान को सीधे तौर पर पीएम मोदी के भविष्य से जोड़कर देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इससे यह संकेत मिला है कि 75 साल की आयु सीमा का नियम अब भाजपा-संघ के शीर्ष नेतृत्व पर लागू नहीं होगा।
राजनीतिक संदेश साफ: 2029 तक मोदी ही चेहरा?
RSS का यह रुख भाजपा में सत्ता समीकरण को बदलने वाला साबित हो सकता है। योगी आदित्यनाथ और हिमंत बिस्वा सरमा जैसे नेताओं के लिए यह संकेत है कि प्रधानमंत्री पद की दावेदारी की रेस फिलहाल स्थगित है। वहीं विपक्ष इसे भाजपा में लोकतंत्र की कमी और व्यक्तिगत नेतृत्व को बढ़ावा देने का मुद्दा बनाकर पेश कर रहा है।
निष्कर्ष:
मोहन भागवत का यह बयान न केवल भाजपा और आरएसएस की आंतरिक राजनीति को उजागर करता है बल्कि विपक्ष को भी 2024 के बाद की सियासत पर हमला बोलने का नया हथियार दे गया है। आने वाले दिनों में यह बहस और तेज होगी कि क्या भाजपा में 75 साल की सीमा सिर्फ दिखावे के लिए थी, या अब पार्टी का पूरा दांव एक बार फिर नरेंद्र मोदी पर ही है।