सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने से जुड़ी याचिका पर केंद्र सरकार से चार हफ्ते में जवाब मांगा। यह याचिका पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर की गई थी।
अदालत ने माना याचिका पर सुनवाई
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने इस याचिका को सुनवाई योग्य मानते हुए केंद्र से जवाब तलब किया।
स्वामी ने कोर्ट को बताया कि 19 जनवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा देने पर निर्णय लेने को कहा था। उस समय केंद्र ने बताया था कि इस विषय पर विचार चल रहा है। कोर्ट ने यह स्वतंत्रता भी दी थी कि यदि स्वामी को केंद्र के रुख से संतुष्टि न हो तो वे दोबारा अदालत आ सकते हैं।
स्वामी ने अपनी नई याचिका में कहा कि उन्होंने 27 जनवरी 2023 और 13 मई 2025 को इस विषय में केंद्र को विस्तृत प्रतिनिधित्व भेजा, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि केंद्र को समयबद्ध निर्णय लेने का निर्देश दिया जाए।
स्वामी का पक्ष: “रामसेतु श्रद्धा का प्रतीक”
याचिका में कहा गया है कि रामसेतु केवल पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल नहीं है, बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था और श्रद्धा का केंद्र भी है।
स्वामी का दावा है कि वैज्ञानिक अध्ययन और पुरातत्व संबंधी प्रमाण बताते हैं कि यह संरचना मानव निर्मित है।
याचिका का इतिहास
सुब्रमण्यम स्वामी ने पहली बार 2007 में रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा देने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी।
उस समय यह याचिका सेतु समुद्रम शिप चैनल परियोजना के खिलाफ थी।
इस परियोजना में 83 किलोमीटर लंबी नहर बनाने की योजना थी, जिससे मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरूमध्य को जोड़ा जाता। आरोप था कि इस परियोजना से रामसेतु को नुकसान हो सकता है।
इसी कारण स्वामी ने अदालत से आग्रह किया कि इस पुल को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाए ताकि इसका संरक्षण सुनिश्चित हो सके।
रामसेतु के बारे में जानें
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रामसेतु, जिसे दुनिया में एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है, भारत के रामेश्वरम और श्रीलंका के मन्नार द्वीप के बीच स्थित है।
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यह करीब 30 मील (48 किमी) लंबी चूना-पत्थर की उथली चट्टानों की श्रृंखला है, जो मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरूमध्य को अलग करती है।
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कहा जाता है कि 15वीं शताब्दी तक इस पुल पर पैदल चलकर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था।
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बाद में आए तूफानों से समुद्र की गहराई बढ़ी और पुल का अधिकांश हिस्सा डूब गया।
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1993 में नासा की सैटेलाइट तस्वीरों ने इसे मानव निर्मित पुल जैसा दिखाया था।