भारतीय करेंसी रुपया शुक्रवार (5 सितंबर) को डॉलर के मुकाबले एक बार फिर कमजोर हो गया और ट्रेडिंग के दौरान ₹89.36 प्रति डॉलर तक गिर गया। यह अब तक का सबसे निचला स्तर है। शेयर बाजार में गिरावट, विदेशी निवेशकों की बिकवाली और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीतियों ने रुपये की कमजोरी को और गहरा कर दिया। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि RBI के हस्तक्षेप ने अचानक आई बड़ी गिरावट को कुछ समय के लिए थाम लिया।
शुरुआत मजबूती से लेकिन जल्द ही पलटा रुख
दिन की ओपनिंग में रुपया हल्की मजबूती के साथ ₹88.10 पर खुला, जो पिछले बंद भाव से 5 पैसे बेहतर था। लेकिन विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की बिकवाली और टैरिफ से जुड़ी चिंताओं के चलते यह तेजी टिक नहीं पाई और रुपया ऐतिहासिक लो तक खिसक गया।
टैरिफ का दबाव
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के रिसर्च एनालिस्ट दिलीप परमार के मुताबिक, डॉलर-रुपया में अचानक आई तेजी का कारण अमेरिकी टैरिफ है। उन्होंने कहा कि सरकारी बैंकों ने करीब ₹88.30 स्तर पर डॉलर बेचकर गिरावट को रोकने की कोशिश की, जो संभवतः RBI के इशारे पर हुआ।
एशियाई करेंसी से पिछड़ा भारत
2025 की शुरुआत से अब तक रुपया लगभग 2.83% कमजोर हुआ है। इसके मुकाबले, कोरियन वॉन 5.74% और चीनी युआन 2.30% मजबूत हुए हैं। यानी भारतीय मुद्रा एशिया की अन्य प्रमुख करेंसी के मुकाबले पिछड़ रही है।
निर्यातकों की चिंता
ब्लूमबर्ग रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय एक्सपोर्टर्स RBI से राहत की मांग करने की तैयारी कर रहे हैं। उनकी मांग है कि अमेरिकी कारोबार से मिली रकम को अस्थायी तौर पर 15% ज्यादा वैल्यू पर बदला जाए।
इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन पंकज चड्ढा ने कहा कि निर्यातक चाहते हैं कि डॉलर की आमदनी को लगभग ₹103 प्रति डॉलर की दर से बदला जाए ताकि टैरिफ के असर को कुछ हद तक संतुलित किया जा सके।
आगे क्या?
इस वक्त रुपया ₹88.33 के ऐतिहासिक निचले स्तर के बेहद करीब है। आने वाले दिनों में इसका रुख विदेशी निवेश, अमेरिकी नीतियों और अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों पर निर्भर करेगा।
यानि, रुपया अभी दबाव में है और इसका सीधा असर निर्यातकों व निवेशकों दोनों पर पड़ रहा है।