चुनाव आयोग (ECI) अब पूरे देश में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) यानी वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन कराने जा रहा है। इसके लिए 10 सितंबर को दिल्ली में सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEO) की बैठक बुलाई गई है। यह बैठक मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार के पद संभालने के बाद तीसरी बड़ी बैठक होगी।
चुनाव आयोग ने साफ किया है कि बिहार के बाद यह प्रक्रिया देशभर में लागू की जाएगी और साल के आखिरी महीनों में इसकी शुरुआत होगी। इसका मकसद है कि 2026 में असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची पूरी तरह अपडेट कर दी जाए।
बिहार मॉडल: 1 महीने में 3 करोड़ वोटर्स का वेरिफिकेशन
बिहार में SIR अभियान के दौरान एक महीने में करीब 3 करोड़ मतदाताओं का वेरिफिकेशन किया गया। हालांकि यहां इस प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक घमासान भी हुआ और विपक्षी दलों ने इसे “मतदाता अधिकार छीनने की साजिश” करार दिया।
वोटर वेरिफिकेशन क्यों जरूरी?
चुनाव आयोग का कहना है कि इस विशेष अभियान का उद्देश्य है:
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वोटर लिस्ट को अपडेट करना।
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मृत व्यक्तियों, स्थानांतरित लोगों और अवैध मतदाताओं (जैसे विदेशी नागरिकों) के नाम हटाना।
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नए योग्य मतदाताओं को लिस्ट में जोड़ना।
कई राज्यों में फिलहाल बांग्लादेश और म्यांमार से आए प्रवासियों की पहचान को लेकर भी अभियान चल रहा है।
वेरिफिकेशन की प्रक्रिया ऐसे होगी
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बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर मतदाताओं की जानकारी और दस्तावेज इकट्ठा करेंगे।
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कोई भी मतदाता चुनाव आयोग की वेबसाइट से फॉर्म डाउनलोड कर खुद भी भर सकता है।
दस्तावेज़ चेकिंग के नियम
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2003 तक वोटर लिस्ट में नाम है – सिर्फ फॉर्म भरना होगा, कोई दस्तावेज़ नहीं।
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1 जुलाई 1987 से पहले जन्म – जन्मतिथि या जन्मस्थान का प्रमाण देना होगा।
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1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्म – जन्मतिथि और जन्मस्थान, दोनों का सबूत देना होगा।
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2 दिसंबर 2004 के बाद जन्म – जन्मतिथि, जन्मस्थान और माता-पिता के दस्तावेज़ ज़रूरी होंगे।
विपक्ष का विरोध
बिहार में इस प्रक्रिया का विपक्षी दलों ने जोरदार विरोध किया।
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9 जुलाई को महागठबंधन ने बंद बुलाकर 7 शहरों में ट्रेनें रोकीं और 12 नेशनल हाईवे जाम किए।
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राहुल गांधी ने पटना में कहा – “जैसे महाराष्ट्र का चुनाव चोरी हुआ, वैसे ही बिहार में चुनाव चोरी करने की कोशिश हो रही है। यह गरीबों के वोट छीनने का तरीका है।”
संसद के मानसून सत्र (21 जुलाई–21 अगस्त) में भी विपक्ष ने लगातार हंगामा किया और बिहार SIR पर चर्चा की मांग की। विरोध इतना तीखा रहा कि आखिरी दिन भी सदन की कार्यवाही बाधित रही।