कर्नाटक में सोमवार से शुरू हुई जाति जनगणना को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। राज्यभर में करीब 2 करोड़ घरों से 7 करोड़ लोगों का सर्वे किया जा रहा है, जो 7 अक्टूबर तक जारी रहेगा। इस बीच हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में इस सर्वे को राजनीतिक मंशा से प्रेरित बताते हुए रोक लगाने की मांग की गई है। चीफ जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस सीएम जोशी की बेंच आज इस पर सुनवाई करेगी।
1.75 लाख कर्मचारी जुटे, दिसंबर तक रिपोर्ट
राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग इस सर्वे को अंजाम दे रहा है। करीब 1.75 लाख कर्मचारी, जिनमें ज्यादातर सरकारी स्कूल शिक्षक शामिल हैं, घर-घर जाकर डाटा जुटाएंगे। आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह वैज्ञानिक ढंग से होगी और दिसंबर तक रिपोर्ट सरकार को सौंप दी जाएगी। इस पर 420 करोड़ रुपये खर्च आने का अनुमान है।
खास बातें –
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हर घर को बिजली मीटर नंबर से जियो-टैग कर यूनिक हाउसहोल्ड आईडी (UHID) दिया जाएगा।
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राशन कार्ड और आधार को मोबाइल नंबर से लिंक किया जाएगा।
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सर्वे में 60 सवाल रखे गए हैं।
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दोहरी पहचान वाली 33 जातियों (जैसे कुरुबा ईसाई, ब्राह्मण ईसाई) के नाम ऐप पर शो नहीं होंगे, लेकिन डेटा से हटाए नहीं जाएंगे।
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घर पर न मिलने वालों या शिकायतों के लिए हेल्पलाइन नंबर 8050770004 जारी किया गया है।
पुराने सर्वे पर विवाद
2015 में किए गए जाति सर्वे को कई समुदायों, खासकर वोक्कालिगा और वीरशैव-लिंगायत समूह ने अवैज्ञानिक बताते हुए खारिज कर दिया था। इन वर्गों की मांग पर ही 12 जून को राज्य सरकार ने नया सर्वे कराने का फैसला लिया।
राजनीतिक गर्मी बढ़ी
विपक्ष का आरोप है कि जाति जनगणना चुनावी फायदे के लिए कराई जा रही है। वहीं, सरकार का दावा है कि कल्याणकारी योजनाओं को सही वर्ग तक पहुंचाने और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए यह जरूरी है।
अब नजरें कर्नाटक हाईकोर्ट की सुनवाई पर हैं – क्या जाति जनगणना पर रोक लगेगी या यह प्रक्रिया जारी रहेगी?