छत्तीसगढ़ के गांवों में किसानों के बीच जैविक खाद और कीटनाशकों की मांग लगातार बढ़ रही है। लेकिन इसी बीच बाजारों में कई ऐसे उत्पाद बेचे जा रहे हैं जिन पर ‘बायो’ का लेबल तो है, मगर उनके असली प्रमाणपत्र और वैज्ञानिक मान्यता पर सवाल उठ रहे हैं। इससे किसान समुदाय में आशंका और बेचैनी दोनों बढ़ी है।
वैज्ञानिकों की चेतावनी
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ डॉ. गजेंद्र चंद्राकर ने कहा कि किसानों को हमेशा टेस्टेड और प्रमाणित जैविक उत्पाद ही खरीदने चाहिए। उन्होंने खुलासा किया कि कुछ कंपनियों के नाम पर बिक रहे कई ब्रांड्स में रासायनिक अवयव पाए गए हैं। उनका कहना है, “मैंने खुद कई उत्पादों की जांच की, जिनमें रसायन मिले। यदि विभागीय स्तर पर और जांच हो, तो और भी चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं।”
किसानों और आदिवासी संगठनों की राय
आदिवासी किसान नेता जितेंद्र ‘गोलू’ मंडावी ने किसानों से अपील की है कि वे उधारी पर खरीदे गए उत्पादों के भुगतान में सतर्क रहें। उनका कहना है कि, “अगर कंपनियां किसानों को गुमराह कर रही हैं तो डीलर और किसान दोनों को चौकस रहना होगा। ऐसी कंपनियों को भुगतान करना अपने आप में जोखिम है।”
कंपनियों का पक्ष
भूमि एग्रो इंडस्ट्रीज़ के छत्तीसगढ़ रीजनल मैनेजर श्री तिवारी का कहना है कि उनकी कंपनी पूरी तरह प्रमाणित और पारदर्शी तरीके से काम करती है। उन्होंने बताया कि उनके सभी उत्पाद वैधानिक मानकों, ऑर्गेनिक प्रमाणपत्र और GST नियमों के अनुरूप हैं। उन्होंने यह भी कहा कि, “अगर कुछ कंपनियां छत्तीसगढ़ के किसानों के साथ छल कर रही हैं तो उनकी जांच कर कार्रवाई होना आवश्यक है।”
प्रशासन की प्रतिक्रिया
रायपुर के कृषि उपसंचालक ने स्वीकार किया कि अगर बाजार में संदिग्ध उत्पाद बिक रहे हैं, तो विभाग सैंपल लेकर अधिकृत लैब में जांच कराएगा। रिपोर्ट के आधार पर दोषी कंपनियों पर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।
किसानों के लिए महत्वपूर्ण सलाह
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केवल प्रमाणित और पंजीकृत जैविक उत्पाद ही खरीदें।
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हर खरीद के समय GST बिल और प्रमाणपत्र जांचें।
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अनजान या बिना लेबल वाले उत्पादों पर भरोसा न करें।
निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ में जैविक खेती को आगे बढ़ाने के लिए किसानों, कंपनियों और प्रशासन—सभी की जिम्मेदारी है। बिना वैज्ञानिक सबूत और आधिकारिक प्रमाणपत्र के किसी भी उत्पाद का उपयोग करना न सिर्फ फसल बल्कि मिट्टी की सेहत के लिए भी खतरा साबित हो सकता है।