जगदलपुर – विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा का महत्त्व केवल धार्मिक आस्था तक सिमित नहीं है, बल्कि यह आदिवासी परंपरा और राजपरिवार की रीती-निति का भी प्रतिक है। इस अनूठे पर्व के अंतर्गत नवमी तिथि को होने वाली मावली परघाव की रस्म को देखने हजारों श्रद्धालु जुटे। यह वह क्षण होता है, जब दंतेवाड़ा से आईं मावली देवी की डोली का मिलन जगदलपुर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी से होता है।
नवमी के दिन दंतेश्वरी मंदिर परिसर कुटरूबाढ़ा में मावली माता की डोली पहुंची, जहां राजमहल से बस्तर राजपरिवार, राजगुरु, पुजारी और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने पारंपरिक विधि-विधान के साथ देवी का स्वागत किया। इसके बाद बस्तर राजा ने स्वयं डोली को अपने कंधे पर उठाकर मंदिर प्रांगण तक पहुंचाया।
डिप्टी सीएम अरुण साव भी हुए शामिल
इस दौरान मावली माता की छत्र और डोली लेकर आने की परंपरा निभाई गई, जिसे मावली परघाव कहा जाता है। मां के स्वागत के लिए श्रद्धालु सड़क किनारे हाथों में पुष्प लिए खड़े रहे और मां के दर्शन कर स्वयं को धन्य समझा। कार्यक्रम में शामिल प्रदेश के डिप्टी सीएम अरुण साव ने भी मां दंतेश्वरी एवं मावली माता के चरणों में नमन कर प्रदेश की खुशहाली और समृद्धि की कामना की।
निभाई गई बस्तर दशहरा की खास रस्म
वहीं जगदलपुर में बस्तर दशहरा की एक खास परंपरा, आस्था और संस्कृति की प्रथा है, जिसे निशा जात्रा कहते हैं। इस पर्व की सभी रस्में बेहद ख़ास होती हैं और इसे पूरे विधि विधान के साथ पूरा भी किया जा रहा है। दरअसल, रियासत काल से जो परंपरा चली आ रही है, उसे आज भी निभाया जा रहा है। अर्द्ध रात्रि को बस्तर राज परिवार के सदस्य निशा जात्रा बाड़ा पहुंचे और तांत्रिक पूजा कर अपने बस्तर की खुशहाली की कामना की।
निशा जात्रा के बाद घंटेभर की विशेष तात्रिक पूजा
गौरतलब है कि, नवरात्र के अष्टमी खत्म होने के बाद अर्ध रात्रि को निशा जात्रा की पूजा की जाती है। निशा जात्रा, बस्तर दशहरा की एक पारंपरिक और तांत्रिक रस्म है, जिसे अष्टमी की रात को किया जाता है और इसमें से रक्षा के लिए बलि प्रथा भी निभाई जाती है। मध्य रात्रि निशा जात्रा मंदिर में तांत्रिक मंत्री के माध्यम से मां खमेश्वरी की पूजा कर 12 बकरों की बलि देने का विधान है।
एक घंटे तक चलती है तांत्रिक पूजा
इसके लिए 12 गांवों के राउत माता के लिए भोग प्रसाद तैयार करते हैं। यह पूजा विधान बस्तर की खुशहाली के लिए किया जा रहा है। बस्तर दशहरा के विभिन्न रस्मों में निशा जात्रा का विशेष महत्व है। इस विधान के तहत मध्य रात्रि में राज परिवार के सदस्य महुआ तेल से प्रज्वलित विशेष मशाल की रोशनी में अनुपमा चौक स्थित निशा जात्रा मंदिर पहुंचते हैं और लगभग एक घंटे तक तांत्रिक पूजा करते हैं। इस दौरान बारह बकरों की बलि दी जाती है और इनके सिरों को क्रमबद्ध रख दीप जलाया जाता है। साथ ही मिट्टी के बारह पात्रों में रक्त भर कर तांत्रिक पूजा अर्चना की जाती है।
सदियों से चली आ रही परंपरा
प्रधान पुजरी का मानना है कि, यह परंपरा फैज साही से चली आ रहा है और राजा अपनी प्रजा की खुशहाली के लिए तांत्रिक पूजा कर देवी-देवताओ से आशीर्वाद मांगते हैं। राजपरिवार के सदस्य कमल चंद्र भंजदेव बताते हैं कि, दुर्गा अष्टमी की रात्रि 12 बजे के बाद निशा जात्रा होती है और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
तंत्र-मंत्र की पूजा स्वयं राजा करता है
बता दें कि, राजा अपनी प्रजा के सुख शांति और तरक्की के लिए पूजा करता है। इस मे कोई बाधा न पहुंचे इसके लिए मां मावली, दंतेश्वरी के सिंह द्वार के लिए बकरों की बलि चढ़ाय्या जाता है। बस्तर दशहरा पर्व में ही साल में एक बार तंत्र-मंत्र की पूजा स्वयं राजा करता है। जिससे बस्तर हमेशा आगे बढे और कोई आपदा बस्तर में न आ पाए। इस खास रस्म को पूरा करने राज परिवार के साथ दसहरा से जुड़े सभी लोग उपस्थित रहे।