आज 9 अक्टूबर को टाटा साम्राज्य के महानायक रतन टाटा को गुज़रे एक साल पूरा हो गया।
86 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा था।
उनके जाने के बाद टाटा ग्रुप में लीडरशिप से लेकर रणनीति तक बहुत कुछ बदल गया।
और हाँ—बदलाव के साथ-साथ विवाद भी बढ़े।
आइए 5 बड़े पॉइंट्स में समझते हैं कि रतन टाटा के बाद इस दिग्गज समूह में क्या हलचल मची—
1. नोएल टाटा की एंट्री – पहली बार दोनों बोर्ड्स में टाटा परिवार
रतन टाटा के निधन के बाद अक्टूबर 2024 में उनके सौतेले भाई नोएल टाटा को टाटा ट्रस्ट्स का चेयरमैन बना दिया गया।
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टाटा ट्रस्ट, ग्रुप की 65% हिस्सेदारी कंट्रोल करता है।
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इसके बाद नवंबर 2024 में नोएल को टाटा सन्स बोर्ड में भी जगह मिली।
2011 के बाद पहली बार टाटा परिवार का कोई सदस्य दोनों बोर्ड्स में शामिल हुआ।
नोएल पहले से ट्रेंट लिमिटेड (वेस्टसाइड और ज़ारा ब्रांड्स वाली कंपनी) के चेयरमैन हैं।
अब उन्हें ग्रुप की रणनीति और भविष्य की दिशा तय करने में अहम माना जा रहा है।
2. विवाद की चिंगारी – नोएल बनाम मिस्त्री गुट
नोएल की नियुक्ति जितनी सुर्ख़ियाँ बटोर रही थी, उतना ही विवाद भी।
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह फैसला ट्रस्ट के भीतर सर्वसम्मति से नहीं हुआ।
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मेहली मिस्त्री और उनके करीबी सदस्यों ने इस पर आपत्ति जताई।
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वे चाहते थे कि टाटा सन्स के फैसलों में उनका सीधा दखल रहे।
यानी ग्रुप के भीतर दो धड़े बन गए—
नोएल टाटा और चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन का गुट
बनाम मिस्त्री गुट
3. बोर्ड पर टकराव – बड़े नाम भी रिजेक्ट
टाटा सन्स बोर्ड में कुछ सीटें खाली हुईं। इन्हें भरने के लिए नए नॉमिनी डायरेक्टर्स चाहिए थे।
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लेकिन दोनों गुट किसी भी नाम पर सहमत नहीं हो पाए।
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यहां तक कि उदय कोटक जैसे बड़े नाम भी रिजेक्ट कर दिए गए।
मतलब, ट्रस्ट की राजनीति सीधे बोर्डरूम तक पहुँच गई।
4. री-अपॉइंटमेंट पर संकट
मामला और बिगड़ा जब नॉमिनी डायरेक्टर विजय सिंह के री-अपॉइंटमेंट पर मतभेद हो गया।
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नोएल चाहते थे कि विजय सिंह बने रहें।
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लेकिन मिस्त्री गुट ने साफ इनकार कर दिया।
नतीजा? विजय सिंह को इस्तीफ़ा देना पड़ा।
5. सरकार की एंट्री – शाह ने दी चेतावनी
विवाद इतना बढ़ गया कि आखिरकार केंद्र सरकार को दखल देना पड़ा।
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गृह मंत्री अमित शाह ने खुद नोएल टाटा और एन. चंद्रशेखरन से मुलाकात की।
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संदेश साफ था:
“टाटा ग्रुप में स्थिरता लाओ।
निजी गुटबाज़ी रोककर कड़े कदम उठाओ।”
Bottom Line
रतन टाटा के जाने के बाद यह पहली बरसी है।
लेकिन उनके बिना टाटा साम्राज्य का यह एक साल सिर्फ शोक और यादों का नहीं, बल्कि सत्ता संतुलन और बोर्डरूम की जंग का भी रहा है।
आज सबसे बड़ा सवाल यही है—
क्या नोएल टाटा उस विशाल विरासत को संभाल पाएँगे,
या फिर ट्रस्ट और बोर्ड के विवाद इस साम्राज्य को हिला देंगे?