Russian Oil Import: भारत घटा सकता है रूस से तेल खरीद, ट्रम्प का दबाव और सैंक्शन से बढ़ी मुश्किलें

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भारत में रिफाइनर्स रूसी तेल की खरीद कम करने की तैयारी में हैं। अंतरराष्ट्रीय एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, रिलायंस इंडस्ट्रीज ने कहा है कि वह सरकार की ओर से तय की जाने वाली गाइडलाइंस के अनुसार अपनी रूसी तेल की खरीद एडजस्ट करेगी। वहीं, इंडियन ऑयल, बीपीसीएल और एचपीसीएल जैसी सरकारी कंपनियां भी नवंबर से आने वाले शिपमेंट्स की कड़ी जांच कर रही हैं।


ट्रम्प ने लगाया दबाव

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत से रूस से तेल खरीद बंद करने की मांग की है। उन्होंने 22 अक्टूबर को रूसी कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर सीधे सैंक्शन लगाए हैं।

  • यूरोपियन यूनियन पहले ही रूसी LNG पर बैन लगा चुका है।

  • ब्रिटेन ने भी हाल ही में इन्हीं कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया था।

अब अमेरिकी ट्रेजरी ने साफ किया है कि 21 नवंबर 2025 तक सभी कंपनियों को रोसनेफ्ट और लुकोइल के साथ लेन-देन खत्म करने होंगे।


सरकारी कंपनियों की सतर्कता

IOC, BPCL और HPCL जैसी कंपनियां फिलहाल नवंबर 21 के बाद आने वाले शिपमेंट्स के दस्तावेज़ बारीकी से जांच रही हैं ताकि इन प्रतिबंधित कंपनियों से सीधी सप्लाई न हो।
सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार ने भी कंपनियों से निजी तौर पर रूसी तेल पर निर्भरता घटाने को कहा है।


पेट्रोल-डीजल पर असर

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत ने सस्ते दामों पर रूसी तेल खरीदा था।

  • 2022 से अब तक भारत ने 140 अरब डॉलर का रूसी तेल आयात किया।

  • इसे रिलायंस समेत अन्य रिफाइनर्स ने प्रोसेस कर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सप्लाई किया।

लेकिन अब अगर भारत मध्य-पूर्व या अमेरिका से तेल खरीदेगा तो यह महंगा होगा। इसका सीधा असर पेट्रोल और डीजल के दामों पर पड़ सकता है।


ट्रम्प का बयान

व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बातचीत में ट्रम्प ने कहा –

“तेल खरीद को तुरंत रोकना आसान नहीं है, लेकिन साल के अंत तक भारत रूसी तेल को जीरो पर ले आएगा। मैंने इस बारे में प्रधानमंत्री मोदी से बात की है।”

इससे पहले अगस्त में ट्रम्प ने रूस से तेल खरीदने के चलते भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाया था। अब भारत पर कुल 50% शुल्क लग रहा है – जिसमें 25% रेसिप्रोकल (जैसे को तैसा) और 25% रूस से तेल खरीदने की पेनल्टी शामिल है।


साफ है कि अमेरिका के दबाव और नए सैंक्शंस के चलते भारत को अपनी एनर्जी स्ट्रेटेजी में बदलाव करना पड़ सकता है। आने वाले महीनों में इसका असर आम लोगों की जेब तक पहुंचना तय है।

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