छत्तीसगढ़ में हाल ही में हुए नक्सली सरेंडर को लेकर सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि नक्सलियों के लगातार आत्मसमर्पण की आड़ में कहीं कोई बड़ी साजिश तो नहीं रची जा रही। उन्होंने पूछा — क्या सरकार झीरम-2 जैसी किसी नई योजना पर काम कर रही है? आखिर सरकार और नक्सलियों के बीच कैसी शांति वार्ता हुई?
“210 नक्सली सरेंडर कर रहे थे, फिर CM और डिप्टी CM क्यों नहीं पहुंचे?” – बैज
दीपक बैज ने कहा कि नक्सल सरेंडर को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ऑपरेशन बंद कर दिए गए हैं और आत्मसमर्पण का कार्यक्रम केवल औपचारिकता बन गया है।
उन्होंने कहा—
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जब 200 से अधिक नक्सली आत्मसमर्पण कर रहे थे, उस समय मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्रियों की उपस्थिति होनी चाहिए थी।
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वे जगदलपुर पहुंचे जरूर, लेकिन एयरपोर्ट पर बंद कमरे में डेढ़ घंटे तक मीटिंग करते रहे।
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प्रेस कॉन्फ्रेंस भरकर लौट जाना क्या सिर्फ दिखावा नहीं है?
इसके साथ ही उन्होंने सवाल उठाया कि नक्सली संगठन के नेता रूपेश उर्फ अभय को मीडिया के सामने क्यों नहीं लाया गया।
“कांग्रेस हमेशा देश तोड़ने वालों के साथ खड़ी रही है” – डिप्टी CM अरुण साव का पलटवार
दीपक बैज के आरोपों का जवाब देते हुए डिप्टी मुख्यमंत्री अरुण साव ने कहा कि कांग्रेस बार-बार उन्हीं लोगों का समर्थन करती दिखती है जो देश की एकता को तोड़ना चाहते हैं।
उन्होंने कहा —
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प्रधानमंत्री ने जो बात कही थी, वह कांग्रेस नेताओं के समझ से परे है।
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पिछली कांग्रेस सरकार ने ही नक्सलियों को पनाह और ताकत दी।
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देशविरोधी तत्वों से कांग्रेस के रिश्ते सबके सामने हैं।
17 अक्टूबर को 210 नक्सलियों का सामूहिक सरेंडर
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जगदलपुर में 210 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया।
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इनमें 153 हथियार पुलिस के हवाले किए गए।
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बस्तर के 140 और कांकेर क्षेत्र के 60 से अधिक नक्सली इसमें शामिल थे।
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आत्मसमर्पण कार्यक्रम में महिला नक्सलियों की संख्या पुरुषों से ज्यादा रही।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बताया था कि सरेंडर करने वाले नक्सलियों को पुनर्वास नीति के तहत मकान, जमीन और 3 साल तक आर्थिक सहयोग दिया जाएगा। उन्हें भारतीय संविधान की प्रति और एक गुलाब देकर सम्मानपूर्वक शामिल किया गया।
झीरम घाटी हत्याकांड: आखिर क्यों दोबारा उठ रहा सवाल?
दीपक बैज द्वारा “झीरम-2” का जिक्र किए जाने के बाद 2013 के झीरम घाटी हमले की चर्चा फिर तेज हो गई है।
क्या हुआ था झीरम में?
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25 मई 2013 को कांग्रेस की परिवर्तन रैली के बाद नेताओं का काफिला सुकमा से जगदलपुर लौट रहा था।
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झीरम घाटी पहुंचते ही 200 से अधिक नक्सलियों ने घात लगाकर हमला कर दिया।
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कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल, महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार समेत कई बड़े नेता मारे गए।
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महेंद्र कर्मा को नक्सलियों ने करीब 100 गोलियां मारीं और एक-एक वाहन की तलाशी लेकर नेताओं को पहचानकर गोली मारी गई।
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हमले की योजना बेहद सुनियोजित थी— रास्ता काटना, आईईडी लगाना, फायरिंग और भागने का रास्ता सब पहले से तय था।
जांच और आरोप
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कांग्रेस ने इसे राजनीतिक साजिश बताते हुए तत्कालीन BJP सरकार पर सुरक्षा में लापरवाही का आरोप लगाया।
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27 मई 2013 को NIA को जांच सौंपी गई।
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सितंबर 2014 में पहली चार्जशीट और अक्टूबर 2015 में सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की गई।
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केस अब भी NIA कोर्ट में ट्रायल में है, लेकिन पूरी रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं की गई।