राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों को लगातार प्रदूषित करने वाले उद्योगों पर बड़ा शिकंजा कसा है। एनजीटी ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार और दिल्ली के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को निर्देश दिया है कि जो उद्योग गंदे पानी या रासायनिक अपशिष्ट नदियों में छोड़ रहे हैं, वहां तुरंत ऑनलाइन सतत प्रवाह निगरानी प्रणाली (OCEMS) लगाई जाए। यह एक ऐसी तकनीक है जो यह बताएगी कि फैक्ट्री से कितना और कैसा अपशिष्ट बाहर छोड़ा जा रहा है। यह व्यवस्था रियल-टाइम में निगरानी कर प्रदूषण रोकने में मदद करेगी।
एनजीटी की बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और विशेषज्ञ सदस्य अफरोज अहमद शामिल थे, ने स्पष्ट कहा कि केंद्र और राज्यों के प्रदूषण बोर्ड अब और लापरवाही नहीं कर सकते। अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों में तुरंत OCEMS स्थापना शुरू करनी होगी। अदालत ने CPCB के अध्यक्ष को आदेश दिया कि वह मोहम्मद इमरान अहमद द्वारा की गई शिकायत पर विधिवत कार्रवाई करें। शिकायत में कहा गया था कि यूपी, हरियाणा, बिहार और दिल्ली में करीब 1,700 उद्योग नदियों में बिना ट्रीटमेंट का गंदा पानी छोड़ रहे हैं।
एनजीटी ने सभी राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति को दो महीनों के भीतर CPCB को रिपोर्ट देने के लिए कहा है। इसके बाद CPCB को एक महीने के भीतर ऐसे उद्योगों के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी जो आदेश का पालन नहीं करेंगे। इसमें चेतावनी, जुर्माना, प्लांट बंद करने और कानूनी कार्रवाई जैसे कदम शामिल हो सकते हैं।
यह फैसला इसलिए भी अहम है क्योंकि गंगा और यमुना जैसी नदियों का प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है और कई उद्योग बिना ट्रीटमेंट के रसायन, गंदा पानी और जहरीला कचरा नदियों में छोड़ रहे हैं, जिससे पानी की गुणवत्ता गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है। एनजीटी का यह आदेश साफ संकेत है कि पर्यावरण सुरक्षा के मामले में अब समझौता नहीं होगा और तकनीक के जरिए सीधा नियंत्रण किया जाएगा।
यह कदम न केवल नदियों को प्रदूषण से बचाने की दिशा में बड़ा फैसला है, बल्कि उन उद्योगों के लिए भी चेतावनी है जो अब तक नियमों में ढिलाई दिखाते रहे हैं। अब पारदर्शिता और जवाबदेही से ही संचालन संभव होगा।